संघ, एक ऐसा संगठन जो वैचारिक प्रतिबद्धता से ओत-प्रोत है, “मानव-कल्याण” को अपना मूल दृष्टिकोण मानता है। इसका एकमात्र उद्देश्य ऐसे ‘मानव-स्वयंसेवक’ का निर्माण करना है, जो राष्ट्र के कायाकल्प में प्रमुख भूमिका निभा सकें। यह संकलन संगठन के विशाल प्रभाव का केवल एक अंश प्रस्तुत कर सकता है, क्योंकि समूचे देश में हजारों स्वयंसेवक व्यक्तिगत स्तर पर भी ऐसे ही प्रभावशाली कार्य और परिवर्तन कर रहे हैं।
संघ का अखिल भारतीय स्वरूप अद्भुत है। यह देश के कोई भी भाग से अछूता नहीं बचा है, चाहे वह छात्र हो या शिक्षक, किसान या श्रमिक, व्यापारी या कारीगर, कर्मचारी या उद्योगपति, बुद्धिजीवी या श्रमजीवी – सभी उसके प्रभाव-क्षेत्र में आ चुके हैं। हजारों शाखाओं में प्रतिदिन अनेक बहुमुखी कार्यक्रम होते हैं, जो नगरों, ग्रामों और सुदूरवर्ती पर्वत-प्रदेशों तक फैले हुए हैं।

संघ की कार्यशैली और चिंतन का मूल उद्देश्य ‘मानव-स्वयंसेवक’ का निर्माण है। इसकी वैचारिक प्रतिबद्धता की वास्तविक कसौटी यह है कि वह अपने कार्यकर्ताओं को संगठन के विचारों और मूल्यों को आत्मसात् करने और जन-जीवन में कायाकल्प करने की किस सीमा तक प्रेरणा दे सकता है। डॉ. हेडगेवार, एक जन्मजात देशभक्त, ने भारत के विगत इतिहास का गहन मनन किया था। उन्हें ज्ञात था कि हमारी आंतरिक शक्ति क्षीण होने और अखंड राष्ट्रीय चेतना के अभाव के कारण मुट्ठीभर विदेशी आक्रामकों के हाथों देश को पराजय का मुँह देखना पड़ा। इसी गंभीर दोष को दूर करने और अति उत्कट अखिल भारतीय राष्ट्र-चेतना जागृत करने के उद्देश्य से उन्होंने संघ की अद्भुत शाखा-पद्धति का आविष्कार किया।
स्वयंसेवकों को संघ-शिक्षा वर्ग नामक प्रशिक्षण-शिविरों में प्रशिक्षित किया जाता है, जहाँ मत, भाषा और जाति के सभी भेदभाव निर्मूल किए जाते हैं। देश के कोने-कोने से विभिन्न भाषाएँ बोलने वाले कार्यकर्ता नागपुर पहुँचते हैं और सामूहिक जीवन जीते हैं, जहाँ वे ‘समूचा राष्ट्र एक कुटुम्ब’ की संकल्पना का प्रत्यक्ष अनुभव करते हैं। एक प्रदेश का प्रचारक जब दूसरे प्रदेश में जाता है तो वह वहाँ की भाषा, खान-पान और परिधान अपनाकर मन के मिलन का राष्ट्रीय प्रतीक बन जाता है।

संघ की विराट् गतिविधियाँ और उनका प्रभाव
- सामाजिक समरसता का आह्वान: संघ ने समाज में व्याप्त अस्पृश्यता और जातिवाद की बुराइयों को मिटाने के लिए अथक प्रयास किए हैं। स्वयंसेवक घर-घर जाकर संपर्क करते हैं और समाज के सभी वर्गों तक यह संदेश पहुँचाते हैं कि ‘हिन्दवः सोदराः सर्वे’ (सारे हिन्दू भाई-भाई) हैं। उदाहरण के लिए, उडुपी में एक विशाल सम्मेलन में धर्माचार्यों ने खुलेआम अस्पृश्यता को धर्म-विरुद्ध और धर्म-बाह्य ठहराया। स्वयंसेवक विभिन्न धार्मिक अवसरों का सदुपयोग करके सामाजिक समरसता के बंधन सुदृढ़ करते हैं, जैसे सामूहिक भोजन और मंदिरों में हरिजनों का प्रवेश।
- सेवा और आपदा राहत: जब भी राष्ट्र पर संकट आया है, चाहे वह दैवी हो या मानवीय, संघ ने कभी उसकी पुकार को अनसुना नहीं किया है। स्वयंसेवक आपदाओं में पीड़ितों की सहायता के लिए तुरंत बिना बुलाए पहुँच जाते हैं और यथासंभव उनके पुनर्वास की भी व्यवस्था करते हैं।
- गुजरात के मोरवी में बाढ़: मोरवी में बाढ़ के बाद, जब नगरपालिका के अध्यक्ष ने कहा कि यदि संघ-स्वयंसेवक शवों को हटाने का कार्य न करते तो मोरवी हैजे का शिकार हो जाता।
- भोपलाल गैस त्रासदी: गैस त्रासदी के बाद, संघ-स्वयंसेवकों ने तत्काल राहत कार्य शुरू किया, घायलों को भोजन, दूध, दवाएँ और कपड़े पहुँचाए, और शवों की पहचान और अंतिम संस्कार में मदद की।
- उत्तराखंड भूकंप: भूकंप आने के मात्र 15 मिनटों के अंदर स्वयंसेवक सक्रिय हो उठे और भोजन, कपड़े और औषधियाँ लेकर ध्वस्त क्षेत्र में जा पहुँचे।
- डबवाली अग्निकांड: हरियाणा के डबवाली में भीषण अग्निकांड में, श्री अशोक वढेरा नामक एक स्वयंसेवक ने 15 बच्चों के प्राण बचाए, भले ही इस प्रयास में वे स्वयं शहीद हो गए।
- रेल दुर्घटनाएँ: चम्पा में रेल दुर्घटना और चरखीदादरी में हवाई जहाज दुर्घटना के बाद भी, स्वयंसेवक सबसे पहले दुर्घटनास्थल पर पहुँचे और बचाव, प्राथमिक चिकित्सा और शवों की पहचान का कार्य किया।

- राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता: स्वयंसेवकों में राष्ट्र के प्रति विशुद्ध निष्ठा भरी रहती है, जिससे राष्ट्र की स्वाधीनता, प्रभुसत्ता और सुरक्षा से संबंधित चुनौतियों के प्रति उनकी प्रतिक्रिया अविलम्ब और सहज होती है।
- कश्मीर की रक्षा: विभाजन के बाद, जब मुस्लिम लीग दिल्ली पर कब्जा करने की योजना बना रही थी, स्वयंसेवकों ने समय पर सूचना देकर सरकार की मदद की। जम्मू-कश्मीर में, महाराजा हरिसिंह के विलय के असमंजस के दौरान, संघ-स्वयंसेवकों ने कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा उतारकर भारतीय तिरंगा फहराया, आंतरिक विद्रोहियों का सामना किया, और जम्मू हवाई पट्टी को चौड़ा करने जैसे तात्कालिक कार्य हाथ में लिए।
- पुर्तगाली आधिपत्य का उन्मूलन: गोवा, दमन और दीव में पुर्तगाली शासन के उन्मूलन में भी स्वयंसेवकों ने सक्रिय भूमिका निभाई।
- सीमा सुरक्षा: भारतीय मजदूर संघ ने 1962 के चीन आक्रमण के दौरान राष्ट्रहित को प्राथमिकता दी और रक्षा उत्पादन में सहयोग किया। सीमावर्ती क्षेत्रों में बांग्लादेशी घुसपैठ के विरुद्ध विश्व हिन्दू परिषद् और स्वयंसेवकों ने जागरूकता अभियान चलाए और घुसपैठियों को पहचानने में अधिकारियों की सहायता की।
- शिक्षा और चरित्र निर्माण: संघ की मानव-निर्माण प्रक्रिया में चरित्र-निर्माण पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
- विद्या भारती: स्वयंसेवकों ने विद्या भारती के माध्यम से देशभर में हजारों विद्यालय (जैसे सरस्वती शिशु मंदिर) खोले हैं, जो शास्त्रीय शिक्षा के साथ-साथ उच्च नैतिक और राष्ट्रीय मूल्यों पर जोर देते हैं।
- सांस्कृतिक पुनर्जागरण: कला के क्षेत्र में ‘संस्कार भारती’ ने भारतीय संस्कृति और परंपरा को आगे बढ़ाया है। स्वयंसेवक राष्ट्रीय गीतों के प्रचार-प्रसार में अति प्रभावी माध्यम सिद्ध हुए हैं। ‘बाल गोकुलम्’ जैसे कार्यक्रम बच्चों में सांस्कृतिक संस्कार रोपने का कार्य करते हैं।
- आर्थिक और ग्रामीण विकास: संघ ने विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों में भी अपनी भूमिका निभाई है।
- श्रमिक कल्याण: भारतीय मजदूर संघ (भा.म.संघ) ने श्रम क्षेत्र में विशुद्ध भारतीय दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है, जो ‘औद्योगिक परिवार’ की संकल्पना पर आधारित है, जहाँ श्रमिक, प्रबंधन और पूंजी सब भागीदार माने जाते हैं।
- किसान उत्थान: भारतीय किसान संघ (भा.कि.संघ) ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने, तकनीकी जानकारी देने और उनके वैध अधिकारों के लिए संघर्ष करने में मदद की है।
- ग्राम परिवर्तन: हाल के वर्षों में ‘गाँवों के कायापलट’ की दिशा में कार्य में तेजी आई है। स्वयंसेवक गांवों में कृषि विशेषज्ञता, नैतिक उत्थान, और सामाजिक सामंजस्य लाने का प्रयास कर रहे हैं।
- वनवासी उत्थान: वनवासी कल्याण आश्रम ने वनवासियों के जीवन-स्तर में सुधार लाने, शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के लिए सैकड़ों प्रकल्प चलाए हैं।
- बंधुआ मजदूरी उन्मूलन: महाराष्ट्र में वनवासियों की बंधुआ मजदूरी की समस्या को दूर करने के लिए सामूहिक विवाह जैसे अभिनव उपाय अपनाए गए।
- धर्मांतरण का प्रतिरोध: संघ ने धर्मान्तरण को रोकने और ‘घर वापसी’ को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। श्री गुरुजी ने ‘न हिन्दुः पतितो भवेत्’ (हिन्दू कभी पतित नहीं होता) का नया मंत्र दिया, जिससे यह मिथ्या धारणा मिट गई कि धर्मांतरित व्यक्ति पतित आत्मा है और उसे वापस नहीं लिया जा सकता।
- तमिलनाडु में सामूहिक धर्मांतरण को रोकने के लिए हिन्दू संगठन एकजुट हुए।
- वनवासी क्षेत्रों में भी मिशनरियों की गतिविधियों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप: विदेशों में भी स्वयंसेवक फैले हुए हैं और ‘हिन्दू स्वयंसेवक संघ’ (HSS) और ‘विश्व हिन्दू परिषद्’ (VHP) जैसी संस्थाओं के माध्यम से अपनी पहचान और भारतीय मूल्यों का संरक्षण कर रहे हैं।
- कीनिया में, स्वयंसेवकों ने ‘संयुक्त हिन्दू परिषद्’ की स्थापना की, जो हिन्दुओं के समवेत स्वर को बुलंद करती है।
- ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य देशों में भी स्वयंसेवकों ने आपातकाल के दौरान भारत के पक्ष में जनमत जुटाया।
आपातकाल में संघ की भूमिका: श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान, जब अन्य सभी संचार व्यवस्थाएँ ठप्प हो गईं, संघ का देशभर में फैला शाखाओं का जाल ही भूमिगत प्रतिरोध का संगठन करने का एकमात्र माध्यम बना। स्वयंसेवकों ने भूमिगत साहित्य वितरित किया, गिरफ्तारियाँ झेलीं, और पुलिस की यातनाओं का सामना किया। उनके साहस, धैर्य और त्याग ने अन्य वर्गों के आत्मविश्वास को भी सींचा।
इस प्रकार, संघ एक पूर्णत: जन-आंदोलन है, जिसके सूत्रधार और प्रगति-वाहक स्वयं जनता ही है। यह बिना किसी सरकारी सुविधा के, और अक्सर विरोधों का सामना करते हुए आगे बढ़ा है। यह उच्च आदर्शवाद, चरित्र और ध्येयनिष्ठता से ओत-प्रोत जनों के द्वारा जन-मन को प्रेरित करने और उनकी शक्ति को जगाने की एक कथा है। संघ का ध्येय मात्र एक संगठन का ध्येय नहीं, बल्कि ऐसा ध्येय है जो राष्ट्र के सर्वाधिक उत्तम और उदात्त अंशों का आह्वान करता है, और यह ऐतिहासिक नियति का अजेय हाथ है जो इसे परम वैभवशाली चरमोत्कर्ष तक ले जाएगा।