'द बंगाल फाइल्स' एक ऐसी फ़िल्म है जो भारत के विभाजन और उसके बाद पश्चिम बंगाल में घटित हिंसात्मक घटनाओं को दर्शाती है। यह फ़िल्म विशेषकर बंगाल में हुए नरसंहार, राजनीतिक षड्यंत्र और हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों को उजागर करती है। यह फ़िल्म केवल एक सिनेमाई प्रस्तुति नहीं, बल्कि ऐतिहासिक सच्चाई को सामने लाने का एक प्रयास है, जिसे वर्षों तक दबाया गया।
हिन्दुत्व केवल एक धार्मिक विचारधारा नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक चेतना है जो भारत को एक आध्यात्मिक और नैतिक राष्ट्र के रूप में देखती है। ‘द बंगाल फाइल्स’ उस विचारधारा के अंतर्गत आती है जो यह दर्शाना चाहती है कि कैसे हिन्दू समाज, राजनीति और वैचारिक षड्यंत्रों का शिकार बना।
इस फ़िल्म में हिन्दुओं के साथ हुए अन्याय और नरसंहार को जिस प्रकार से प्रस्तुत किया गया है, वह हिन्दुत्व की उस चेतना को जागृत करता है जो कहती है कि भारत में रहने वाले प्रत्येक हिन्दू को अपने इतिहास को जानना और उसके प्रति सजग होना चाहिए। यह फ़िल्म उन आवाज़ों को बल देती है जिन्हें ‘सेक्युलरिज़्म’ और ‘राजनीतिक संतुलन’ के नाम पर दबा दिया गया।
राष्ट्रीयता का मूल उद्देश्य होता है – देश की एकता, अखंडता और आत्मसम्मान को बनाए रखना। ‘द बंगाल फाइल्स’ राष्ट्रीय भावनाओं को उभारने वाली एक गूढ़ अभिव्यक्ति है, जो यह प्रश्न उठाती है कि क्या भारत में इतिहास को सच के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है या केवल राजनीतिक लाभ के लिए छिपाया जा रहा है? इस फ़िल्म के माध्यम से यह संदेश स्पष्ट रूप से सामने आता है कि भारत में ऐसे कई ऐतिहासिक घटनाक्रम हैं जिनपर ध्यान नहीं दिया गया, क्योंकि वे तथाकथित “धर्मनिरपेक्ष” राजनीति के विरुद्ध थे। यह फ़िल्म भारत के नागरिकों को अपने देश के वास्तविक इतिहास से जोड़ती है, और उन्हें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी वर्तमान पीढ़ियाँ सत्य से अनभिज्ञ रखी जा रही हैं।
‘द बंगाल फाइल्स’ ने समाज में एक नई चर्चा की शुरुआत की है। यह चर्चा केवल अतीत के बारे में नहीं है, बल्कि वर्तमान और भविष्य की सामाजिक संरचना को लेकर भी है। इस फ़िल्म ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया कि इतिहास की एकतरफा व्याख्या कितनी खतरनाक हो सकती है। यह फ़िल्म लोगों को जागरूक बनाती है, कि उन्हें अपने इतिहास, अपनी संस्कृति और अपनी अस्मिता को पहचानने की आवश्यकता है।
‘द बंगाल फाइल्स’ कोई साधारण फिल्म नहीं, बल्कि एक वैचारिक आंदोलन है। यह आंदोलन सत्य के लिए, न्याय के लिए और आत्मसम्मान के लिए है। यह फ़िल्म एक आह्वान है — एक पुकार है उन सभी लोगों से जो भारत को केवल एक भू-भाग नहीं, बल्कि एक जीवंत सांस्कृतिक राष्ट्र मानते हैं। हमें यह समझना होगा कि सत्य को जानना, उसे स्वीकार करना और उसके लिए खड़ा होना ही सच्चा, वास्तविक हिन्दुत्व है। ‘द बंगाल फाइल्स’ इसी राह पर एक सशक्त कदम है।

लेखाराम बिश्नोई
लेखक व विचारक