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ज्ञानसभा-  शिक्षा में एकात्म भाव का उजियारा



हाल ही में 28 जुलाई को केरल में संपन्न हुई ज्ञान सभा शिक्षा की समग्रता की दृष्टि से एक अद्भुत और अविस्मरणीय आयोजन रहा जिसकी वर्तमान में अत्यंत आवश्यकता है। यह विश्वगुरू रहे भारत में शैक्षिक परिवर्तन की एक अद्भुत तस्वीर है। सौभाग्य से सार्थक शैक्षिक परिवर्तन का यह शंखनाद जगतगुरु आदि शंकराचार्य जी की भूमि से हुआ है।

केरल की ज्ञान सभा अनेक मायनो में बहुत विशिष्ट रही। इस आयोजन में देश के 100 से अधिक माननीय कुलपति, कुलाधिपति उपस्थित रहे। ये कुलपति मेडिकल कॉलेज के भी हैं, तकनीकी विश्वविद्यालय के भी हैं, सरकारी विश्वविद्यालय के भी हैं, निजी विश्वविद्यालय के भी हैं, मानविकी विश्वविद्यालय के भी हैं ,सेवार्थ चलने वाले संस्थानों द्वारा चलाया जा रहे विश्वविद्यालय के भी हैं। इसके अलावा 50 से अधिक अखिल भारतीय संस्थानों के माननीय निदेशक कार्यक्रम में सहभागी हुए। चार राज्यों के शिक्षा मंत्री भी सहभागी हुए, साहित्यकार भी, शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों के संचालक भी। प्रोफेसर भी, एसोसिएट प्रोफेसर भी,  विद्यालय शिक्षा के संस्था प्रधान भी आए और शिक्षक भी सहभागी बने। इस आयोजन में 35- 40 वर्ष की आयु वाले युवा शिक्षा साधक भी हैं तो 70 वर्ष की उम्र पार कर चुके, 35- 40 वर्ष का सुदीर्घ  शिक्षण अनुभव रखने वाले वरिष्ठ शिक्षाविद भी है। शिक्षाक्षेत्र में कार्यरत विभिन्न अखिल भारतीय संगठनों के राष्ट्रीय पदाधिकारी भी इस आयोजन में सहभागी हुए।
जम्मू कश्मीर के शिक्षक हैं तो तमिलनाडु और केरल के शिक्षक भी हैं। गुजरात से लेकर मिजोरम त्रिपुरा असम तक के शिक्षक भी हैं। केवल शिक्षक ही नहीं है तो अनेक विद्यार्थी भी हैं कुल मिलाकर तीन सौ — सवा तीन सौ की संख्या रही होगी, किंतु उसमें यह सारी विविधताएं समाहित है, यह अपने आप में बहुत विशेष बात हैं।

बहुत पुरानी बात नहीं है, हम सब ने भी अपने जीवन में यह देखा है जब अलग-अलग विश्वविद्यालय के कुलपति एक मंच पर आने में संकोच करते थे, एक ही प्रकार की शिक्षा के लिए काम करने वाले संस्थान भी सामान्य आपस में मिलजुल कर भविष्य की योजनाओं पर विचार नहीं करते थे (जैसे देश में तकनीकी शिक्षा के लिए तकनीकी विश्वविद्यालय भी हैं, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भी है, भारतीय तकनीकी संस्थान भी हैं, यह सभी तकनीकी शिक्षा के लिए काम करते हैं)  चिकित्सा की दृष्टि से विभिन्न पद्धतियां ,पैथी है जैसे एलोपैथी, होमियोपैथी ,आयुर्वेदिक, यूनानी, प्राकृतिक चिकित्सा, इत्यादि । इनके अलग अलग विश्विद्यालय भी है, कुलपति भी है।  यह सभी संस्थान मिलकर मानव मात्र के स्वास्थ्य का चिंतन करें, यह आज भी असम्भव लगता है।
विद्यालय शिक्षा के शिक्षकों को तो लंबे समय तक दोयम दर्जे का माना जाता रहा है । यहां तक की विद्यालय शिक्षा से जुड़े बोर्ड, पाठ्यक्रम समितियां, यहां तक की प्राथमिक कक्षाओं की पुस्तक लेखन समितियों  पर भी उच्च शिक्षा के लोगों का स्वाभाविक अधिकार माना जाता था , शिक्षा के अलग-अलग संस्थाओं का अपना अलग-अलग स्टेटस अहंकार रहता था। यह किसी प्रकार से शिक्षा की भारतीय दृष्टि नहीं है , यह सब लंबे समय से चले आ रही उपनिवेशवादी शिक्षा का परिणाम था अन्यथा भारतीय ज्ञान परंपरा में तो शिक्षा को सदैव समग्र दृष्टिकोण से ही देखा गया है। शिक्षक किसी भी स्तर  के विद्यार्थियों को पढ़ने वाला हो वह सदैव सम्माननीय पूजनीय रहा है। शिक्षा के बारे में चिंतन का अवसर आने पर यह चिंतन सामूहिक ही होता था।

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केरल की ज्ञान सभा में देश भर के विभिन्न प्रकार के शिक्षक, शिक्षाविद ,कुलपति, कुलाधिपति, निदेशक, एक साथ एक मंच पर,एक विचार और एक भाव के साथ एकत्र आए, सामूहिक भाव था भारत प्रथम का, एक भारत श्रेष्ठ भारत का। ऐसे  अत्यंत महत्वपूर्ण ऐतिहासिक क्षण एक दिन में नहीं आते। इसके लिए लंबी साधना करनी पड़ती है। निस्वार्थ भाव से स्वयं को समर्पित करना पड़ता है, तब लोगों का और समाज का ही नही , अपनो का भी विश्वास जमता है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने पिछले 20 वर्षों में माननीय अतुल भाई कोठारी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में यह अद्भुत कार्य कर दिखाया है जब शिक्षा में भारतीयता और विकसित भारत के लिए शिक्षा विषय पर देश भर के ऐसे विशेष शिक्षक समूह ने एक साथ आकर एक साथ बैठकर चिंतन मनन किया और भविष्य की योजनाएं भी बनाई है।

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प्रारंभ में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने “ज्ञानोत्सव”  के माध्यम से ज्ञानार्जन की प्रक्रिया को एक उत्सव में परिवर्तित करने का स्वरूप देते हुए शिक्षा क्षेत्र में व्यक्तिगत एवं शिक्षण संस्थान के स्तर पर देश के विभिन्न  भागों में कार्य करने वाले विभिन्न शिक्षकों को एक बड़ा मंच दिया।। राष्ट्रीय स्तर पर और विभिन्न राज्यों में ज्ञानोत्सव के आयोजन हुए जहां हजारों की संख्या में शिक्षकों ने अपने शैक्षिक नवाचार देश के सामने रखें।

पिछले वर्ष प्रयागराज महाकुंभ के अवसर पर एक अच्छी योजना बनाकर भारतीय शिक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहे देश के विभिन्न दिशाओं के शिक्षा केंद्रों में “ज्ञानकुंभ” के आयोजन हुए।। यह आयोजन नालंदा विश्वविद्यालय, देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार गुजरात, विद्यापीठ कर्णावती और महर्षि अरविंद की शिक्षा साधना भूमि पांडिचेरी में संपन्न हुए। प्राचीन काल में कुंभ के मेले जिस प्रकार से  आध्यात्मिक और सामाजिक चिंतन  के साथ-साथ शैक्षणिक विमर्श के भी केंद्र रहे होंगे वैसा स्वरूप खड़ा करने का प्रयास इन ज्ञान कुंभ के माध्यम से रहा ।  तीन तीन दिवसीय के इन आयोजनों में बड़ी संख्या में शिक्षा और संस्कृति के उत्थान के लिए काम करने वाले साधक एकत्र आए। सार्थक, सकारात्मक और सृजनात्मक विचार विमर्श हुआ इसके बाद प्रयागराज महाकुंभ के अवसर पर एक माह से अधिक अवधि का ज्ञान महाकुंभ लगाया गया जहां भारत भर से 10,000 से अधिक लोग इस आयोजन में सहभागी हुए। बहुत विचार विमर्श और चिंतन के बाद शैक्षिक दृष्टि से महत्वपूर्ण 10 संकल्प पारित किए गए अनुवर्तन के रूप में देश भर के शिक्षण संस्थानों में इन संकल्पना पर चर्चा और क्रियान्वयन की दिशा के कार्यक्रम भी होने वाले हैं। यह शैक्षिक दृष्टि से भारत की  नैमिषारण्य परंपरा का ही पुनर्जीवन है।

ज्ञानोत्सव, ज्ञानकुंभ के बाद तीसरे क्रम पर केरल की यह राष्ट्रीय स्तर की ज्ञानसभा उपनिवेशवादी शैक्षिक पृष्ठभूमि  से बाहर निकालने की दिशा में एक बड़ा कदम है। न्यास की मूल मान्यताओं में से एक है-  देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलना पड़ेगा।मेरा यह अनुभव है कि शिक्षा को बदलना है तो शिक्षक का मन बदलना पड़ेगा, शिक्षक को एक सार्थक शैक्षणिक परिवर्तन के लिए तैयार करना पड़ेगा। सार्थक समाज परिवर्तन के वाहक शिक्षक और शिक्षण संस्थान ही बनने वाले हैं। इस दृष्टि से बिना किसी आंदोलन, बिना किसी मांग पत्र या बिना किसी धरना प्रदर्शन की योजना के अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक भूमिका,  अपने राष्ट्रीय दायित्व बोध को समझने की दृष्टि से ज्ञान सभा के आयोजन अत्यंत महत्वपूर्ण है। 

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राष्ट्रीय स्तर की ज्ञान सभा के बाद विभिन्न राज्यों में भी इस प्रकार की ज्ञान सभाओं के आयोजन का आह्वान है।  एक साथ आकर बैठने से, सामूहिक चिंतन से, संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्” के आधार पर, सामूहिक संकल्प शक्ति से ही शिक्षा में भारतीयता का योग्य समावेश कर विश्व के सामने एक श्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था का आदर्श स्वरूप रोल मॉडल खड़ा किया जा सकता है।

भारत केंद्रीत शिक्षा का एक नया , मजबूत मॉडल देश के सामने खड़ा हो, यह हम सबके सामने प्रयासों से ही होगा। आप सभी से इस सद्प्रयास में सहभागी होने का विनम्र आग्रह है।।

संदीप जोशी ,
सदस्य राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद

9414544197
Jaloresjoshi@gmail.com

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