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मेडिकल शिक्षा में बड़ा घोटाला: धर्मगुरु और पूर्व UGC प्रमुख जाँच के घेरे में

देश में स्वास्थ्य शिक्षा की छवि को गहरा झटका देने वाला एक विशाल मेडिकल घोटाला सामने आया है, जिसमें न केवल सरकारी अधिकारी, बल्कि शिक्षा और धर्म की प्रतिष्ठित हस्तियाँ तक शामिल पाई गईं। सीबीआई की जांच में खुलासा हुआ कि एक संगठित नेटवर्क के जरिये निजी मेडिकल कॉलेजों की मान्यता, निरीक्षण और एनओसी प्रक्रिया को भ्रष्टाचार का अड्डा बना लिया गया था। आरोप है कि इसके केंद्र में पूर्व यूजीसी चेयरमैन डीपी सिंह, रावतपुरा सरकार के नाम से जाने जाने वाले स्वयंभू धर्मगुरु रविशंकर महाराज, और कई प्रभावशाली कॉलेज मालिक और बिचौलिए थे।

सीबीआई की एफआईआर के अनुसार, कॉलेज प्रबंधन को समय से पहले निरीक्षण टीम की सूचना, रिपोर्ट में हेरफेर और जरूरी कागजातों में छेड़छाड़ करवा कर करोड़ों रुपये की अवैध कमाई की गई। कॉलेजों को मनमाफिक रिपोर्ट और सुविधाजनक निरीक्षण के लिए प्रति मामले 25 से 55 लाख रुपये तक की डीलिंग सामने आई। सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि इसमें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय, नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) और नेशनल हेल्थ अथॉरिटी के कई अधिकारी भी शामिल थे, जिनकी जिम्मेदारी मेडिकल शिक्षा की गुणवत्ता बनाए रखने की थी।

रावतपुरा इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज और गीताांजलि विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों पर भी गंभीर आरोप लगे हैं। सीबीआई ने मार्च 2025 में छापा मारकर NMC निरीक्षण पैनल के डॉक्टरों को घूस लेते हुए रंगेहाथ गिरफ्तार किया और कई उच्चस्तरीय कार्यालयों में रेड डाली। दस्तावेजों और इलेक्ट्रॉनिक डेटा की जांच से प्रमाण मिले कि कॉलेज प्रशासन को निरीक्षण संबंधी गोपनीय जानकारी पहले ही दे दी जाती थी, जिससे वे जांच सुबह से पहले अपनी कमियां छिपा सकें।

इस घोटाले का सबसे बड़ा नुकसान योग्य छात्रों और आम जनता को हुआ है। गलत तरीके से मान्यता प्राप्त कॉलेजों से निकले डॉक्टरों की योग्यता और चिकित्सा व्यवस्था पर सवालिया चिन्ह खड़ा हो गया है। साथ ही, शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर जनता के भरोसे में भी गहरी सेंध लगी है। इस घटना के बाद मेडिकल शिक्षा क्षेत्र की पारदर्शिता, ईमानदारी और सख्त निगरानी की मांग ओर तेज हो गई है।

सरकार और नियामक एजेंसी पर अब दबाव है कि दोषियों को कठोर सजा दी जाए और भविष्य में इस तरह के घोटाले रोकने के लिए तंत्र को सुधारें। इस पूरे मामले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे जीवन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में नियमों की अनदेखी और भ्रष्टाचार का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।

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