बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा थम नहीं रही है। कट्टरपंथी मुस्लिमों की भीड़ ने एक बार फिर ईशनिंदा का आरोप लगाकर अत्याचार किया। रविवार (22 जून) को एक बुजुर्ग हिंदू और उनके बेटे पर इस्लाम का अपमान करने का आरोप लगाकर कट्टरपंथियों ने बेरहमी से पीटा। पीड़ितों की पहचान परेश चंद्र शील (69) और बिष्णु चंद्र शील (35) के रूप में हुई है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह घटना बांग्लादेश के रंगपुर डिवीजन के लालमोनिरहाट सदर उपजिला में हुई। सोशल मीडिया पर घटना का वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें मुस्लिम भीड़ को बुजुर्ग हिंदू व्यक्ति को बेरहमी से पीटते हुए देखा जा सकता है। कट्टरपंथियों की भीड़ ने परेश चंद्र शील की बनियान तक फाड़ दी। उन्होंने उन्हें थप्पड़ मारे, मुक्के से उनके सिर पर वार किया फिर लात मारी। बुजुर्ग व्यक्ति इन दरिंदों से खुद को चाहकर भी नहीं बचा पा रहे थे। इस बीच बिष्णु चंद्र शील ने अपने पिता को बचाने की कोशिश की, तो बदमाशों ने उन पर भी हमला कर दिया।
बताया जा रहा है कि परेश चंद्र शील अपने बेटे के साथ लालमोनिरहाट के वार्ड नंबर 9 में एक सैलून चलाते थे। एक मुस्लिम ग्राहक अपने बाल कटवाने के लिए उनके सैलून गया। इस दौरान उसने परेश चंद्र शील पर इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया। एक अन्य स्थानीय मुस्लिम ने भी दावा किया कि उसने एक महीने पहले बुजुर्ग को अपमानजनक टिप्पणी करते हुए सुना था।
इसके तुरंत बाद मुस्लिम चरमपंथी पूर्व नियोजित तरीके से परेश चंद्र शील के सैलून के बाहर इकट्ठे हुए और उन पर व उनके बेटे पर बेरहमी से हमला किया। बाद में भीड़ ने लालमोनिरहाट पुलिस स्टेशन को इसकी सूचना दी। पुलिस ने ईशनिंदा के आरोपों के आधार पर परेश चंद्र शील और बिष्णु चंद्र शील को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ओसी नूरनबी मिया ने कहा, “धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में दो लोगों को गिरफ्तार किया गया है। उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा रही है।” वहीं, गंभीर हमले के लिए मुस्लिम भीड़ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
बता दें कि बांग्लादेश में कथित ईशनिंदा के आरोपों के आधार पर हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाना कोई नई बात नहीं है। शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार के तख्तापलट के बाद कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने बांग्लादेश में सैकड़ों हिंदू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया और उनके जीवन को बर्बाद कर दिया। पहले भी कई हिंदू अल्पसंख्यकों को उनके सरकारी पद के कारण निशाना बनाया गया था और ये सब उनके मुस्लिम अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा किया गया। यही नहीं, कथित ईशनिंदा के आरोपों के आधार पर स्कूल के शिक्षकों और प्रोफेसरों को निशाना बनाकर नौकरी तक से निकाल दिया गया।