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हम संघ का वर्चस्व नहीं चाहते : डॉ. भागवत

हम संघ का
वर्चस्व नहीं चाहते
: डॉ. भागवत
Sarsanghchalak+ji

नई दिल्ली, 17 सितम्बर हम संघ का
वर्चस्व नहीं चाहते। हम समाज का वर्चस्व चाहते हैं। समाज में अच्छे कामों के लिए
संघ के वर्चस्व की आवश्यकता पड़े संघ इस स्थिति को वांछित नहीं मानता। अपितु समाज
के सकारात्मक कार्य समाज के सामान्य लोगों द्वारा ही पूरे किए जा सकें
, यही संघ का
लक्ष्य है।”
यह बात राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक प.पू. मोहन भागवत ने
भविष्य का भारत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का
दृष्टिकोण
विषय पर अपने तीन
दिवसीय व्याख्यान के पहले दिन के सत्र को संबोधित करते हुए कही।
Bhavishya+Ka+Bharat Vyakhyanmala Vigyan+Bhawan 17 9 2018
संघ के संस्थापक
और आदि सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को संघ विचार का प्रथम स्रोत बताते हुए
डॉ भागवत ने कहा
, कि अपनी स्थापना
के समय से ही संघ का लक्ष्य व्यक्ति निर्माण के माध्यम से समाज का निर्माण करना
रहा।
जब समर्थ, संस्कारवान और
संपूर्ण समाज के प्रति एकात्मभाव रखने वाले समाज का निर्माण हो जाएगा तो वह समाज
अपने हित के सभी कार्य स्वयं करने में सक्षम होगा।
संघ के स्वभाव और
इसकी प्रवृत्ति के विषय में डॉ. भागवत ने कहा
, कि संघ की कार्यशैली विश्व में अनूठी है। इसकी किसी से
तुलना नहीं हो सकती। यही कारण है
, कि संघ कभी प्रचार के पीछे नहीं भागता।
सभी विचारधारा के
लोगों को संघ का मित्र बताते हुए डॉ भागवत ने कहा
, कि डॉ हेडगेवार के मित्रों में सावरकर से लेकर
एम एन राय जैसे लोग तक शामिल थे। न उन्होंने किसी को पराया माना न संघ किसी को
पराया मनता है।
संघ का मानना है, कि समाज को
गुणवत्तापूर्ण बनाने के प्रयासों से ही देश को वैभवपूर्ण बनाया जा सकता है।
उन्होंने कहा, कि व्यवस्था में
परिष्कार तब होगा
, जब समाज का
परिष्कार होगा और समाज के परिष्कार के लिए व्यक्ति निर्माण ही एक उपाय है।
उन्होंने कहा, कि संघ का
उद्देश्य हर गांव
, हर गली में ऐसे
नायकों की कतार खड़ी करना है
, जिनसे समाज प्रेरित महसूस कर सके।
http://vskbharat.com/wp-content/uploads/2018/09/Sarsanghchalak-ji..jpg
समाज में वांछित
परिवर्तन ऊपर से नहीं लाया जा सकता। भेदरहित और समतामूलक समाज के निर्माण को संघ
का दूसरा लक्ष्य बताते हुए डॉ भागवत ने कहा
, कि हमारी विविधता के भी मर्म में हमारी एकात्मता ही है।
विविधता के प्रति सम्मान ही भारत की शक्ति है।
पूर्व राष्ट्रपति
डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
,
एम.एन. राय, डॉ. रवीन्द्र नाथ
ठाकुर
, डॉ. वर्गीज
कुरियन आदि अनेक महापुरुषों का उदाहरण देते हुए डॉ भागवत ने कहा
, कि इस देश के
समाज को अपने प्रति विश्वास जागृत करने की आवश्यकता है। यह विश्वास भारत की
प्राचीन संस्कृति और परंपराओं से ही जागृत हो सकता है। भारत के मूल तत्व की अनदेखी
करके जो प्रयास किए गए उनकी विफलता स्वत: स्पष्ट है। 
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डॉ. भागवत ने कहा, कि संघ और इसके
कार्यक्रमों का विकास अपने कार्यकर्ताओं की स्वयं की ऊर्जा और प्रेरणाओं से होता
है। संघ की उसमें किसी प्रकार की भूमिका नहीं होती। आपदा और संकट की स्थिति में
संघ का प्रत्येक स्वयंसेवक देश के प्रत्येक नागरिक के साथ खड़ा है यह संघ का
स्वभाव है।
भविष्य का भारत:
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण विषय पर आयोजित तीन दिनों की व्याख्यानमाला
का आज पहला दिन था। संघ के सरसंघचालक के व्याख्यान से पूर्व विषय की प्रस्तावना
रखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर क्षेत्र के संघचालक माननीय बजरंगलाल
गुप्त ने कार्यक्रम की संकल्पना स्पष्ट की।
विज्ञान भवन के
सभागार में समाज के अलग-अलग क्षेत्र के ख्यातनाम विशिष्ट लोगों उपस्थित थे।
कार्यक्रम में कई देशों के राजदूत
, लोकेश मुनि, कई केन्द्रीय मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, अर्जुन राम
मेघवाल
, विजय गोयल आदि
उपस्थित थे। इनके साथ ही मेट्रो मैन ई श्रीधरन
, फिल्म जगत की कई हस्तियां मनीषा कोइराला, मालिनी अवस्थी, 
अन्नू मलिक, अन्नु कपूर, मनोज तिवारी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी भी उपस्थित थे।‌
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