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हमें विश्व की सारी समस्याओं का समाधान करने वाले वैभवशाली एवं समर्थ भारत का निर्माण करना है – डॉ. मोहन भागवत जी

14 जनवरी मकर संक्रांति के अवसर पर परेड ग्राउंड कोलकत्ता महानगर के स्वयंसेवकों के एकत्रीकरण में सरसंघचालक जी का उद्बोधन

IMG 20170118 WA0013कोलकत्ता
(विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने
कहा कि मकर संक्रमण का यह पर्व अपने समाज में बहुत प्राचीन काल से चलता आया
पर्व है. भारत का समाज उत्सव प्रिय है. गंगासागर में हम लोग जो मकर
संक्रमण के दिन स्नान करते हैं, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है. राजा सागर ने
अश्वमेध यज्ञ किया था. गंगासागर में कपिल मुनि बहुत वर्षों से तपस्या में
लीन थे. किसी राजा ने अश्वमेध का वह घोड़ा चुरा लिया और उसे लाकर कपिल मुनि
के आश्रम में बांध दिया. कपिल मुनि का राजनीति से कोई सम्बंध नहीं था.
लेकिन राजा सागर के पु़त्रों ने कपिल मुनि का अपमान किया. कपिल मुनि की
समाधी टूट गयी और उनकी क्रोधाग्नि से राजा सागर के सौ पुत्र भस्म हो गये.
इस प्रकार का मिथ्या आरोप लगाने से नुकसान तो राजा सागर के पुत्रों का ही
हुआ न. तपस्वियों की तपस्या को भंग करने का कार्य राजा लोग करते रहते हैं.
परंतु तपस्वी उन सभी बाधाओं को दूर करके अपनी तपस्या जारी रखते हैं.

अब राजा सागर के पुत्रों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा को धरती पर
लाना आवश्यक था. राजा भगीरथ की कहानी राजा सागर के कई पीढ़ी पश्चात की
कहानी है. पीढ़ी दर पीढ़ी मां गंगा को धरती पर लाने का प्रयास चलता रहा,
जैसे महाराज अंशुमान, भगीरथ इत्यादि. राजा भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर
मां गंगा धरती पर आने के लिये राजी हो गई. परंतु मां गंगा का वेग बहुत
प्रबल था. तब सवाल पैदा हो गया कि मां गंगा को धारण कौन करेगा, तो फिर
तपस्या करके शिवजी को प्रसन्न किया. गंगा शिवजी की जटाओं में खो गई, उन्हें
मां गंगा को धरती पर लाने के लिये पुनः तपस्या करनी पड़ी. हमारे समाज में
कोई महान कार्य करने के लिये कोई व्यक्ति जब बहुत प्रयत्न करता है, तब हम
कहते हैं कि इन्होंने भागीरथ प्रयत्न किया. इस प्रकार से वह गंगा सागर है,
यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाले एक महान एवं पवित्र कार्य का प्रमाण है. हम भी
संघ के स्वयंसेवक एक महान एवं पवित्र कार्य में जुटे हुए हैं. समूचे विश्व
के बिगड़े हुए संतुलन को ठीक करने वाला, विश्व की सारी समस्याओं को ठीक
करने वाला एक वैभवशाली एवं समर्थ भारत का निर्माण करना है और उसके लिए हमें
हिन्दू समाज को संगठित करना है.

IMG 20170118 WA0015यदि
इसी तरह हम कार्य करते रहे, तो बाधाएं अपने आप दूर हो जाएंगीं. मकर
संक्रमण के दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं. दिन तिल-तिल करके बड़ा
होने लगता है, तथा प्रकाश अधिक मिलता है. प्रकाश के कारण मनुष्य को कार्य
करने की ऊर्जा अधिक मिलती है. प्रकाश देने वाले सूर्य के पथ में बाधाएं
नहीं हैं क्या, सूर्य के रथ में सात घोड़े हैं, लगाम के लिए सात सांप मौजूद
हैं, सात प्रकार की इच्छाओं को अपने वश में करके रथ चलाना पड़ता है. सर्य
कभी डूबता नहीं, पृथ्वी के चारों ओर धूमता है.

कार्य की साधना कार्यकर्त्ताओं पर निर्भर करती है. रास्ता कांटों से
युक्त है, साधन है या नहीं, यह सोचने से कार्य नहीं होगा, निरंतर कार्य
करते रहना पड़ेगा. संघ संस्थापक डॉक्टर जी के पास क्या साधन था! कुछ भी
नहीं था, उस समय कार्यकर्त्ता नहीं थे, सरकार का साथ नहीं था, उल्टे
अंग्रेजों का विरोध था. संपूर्ण हिन्दू समाज को संगठित करुंगा, ऐसा प्रबल
उद्देश्य उनके मन में रहने के कारण पंद्रह वर्ष की कालावधि में संपूर्ण
राष्ट्र का प्रतिनिधित्व देख कर गए. भारत वर्ष में हिन्दुओं की स्थिति क्या
है, इस देश में हिन्दुओं की कोई परवाह नहीं करता, हिन्दुओं को कोई पूछता
नहीं, हिन्दुओं के कष्ट की कोई चर्चा नहीं होती. शक्ति की पूजा सभी लोग
करते हैं, शक्तिशाली को सभी लोग नमस्ते करते हैं. स्वामी विवेकानंद की
शिक्षा है – शक्ति की साधना ही जीवन है और दुर्बलता ही मौत. शक्ति की साधना
में समाज की शक्ति को जगाना है.

गुरु गोविन्द सिंह जी का 350वां जन्मवर्ष पूरे देश में मनाया जा रहा है.
गुरु गोविन्द सिंह जी ने देश के विभिन्न हिस्सों से अलग-अलग जाति के पांच
ऐसे लोगों को चुना, जो अपने देश और धर्म के लिए जान तक देने के लिए तैयार
थे, उन पंच प्यारों को सिख धर्म की दीक्षा दी. भौगोलिक सीमा, जातिभेद की
सीमा तोड़कर सामाजिक समरसता का जागरण किया. स्वामी रामानुजाचार्य से भीमराव
आम्बेडकर तक समाज को संगठित करने वाले थे. स्वामी प्रणवानंद जी ने कहा था –
महाशक्ति का जागरण महामिलन और महासमन्वय से करना होगा.

डॉ.
मोहन भागवत जी ने कहा कि हमारा संघ कार्य किसी के विरोध में नहीं है, किसी
की प्रतिक्रिया में नहीं है. हिन्दू समाज का संगठित होना एक स्वाभाविक
प्रक्रिया है. हमारा समाज संगठित रहे, सक्षम तथा शक्तिशाली रहे यह
स्वाभाविक है. एक पत्रकार सम्मेलन में श्री गुरुजी से पूछा था कि ‘‘मेरे
गांव में एक भी मुसलमान या इसाई नहीं है, तो मेरे गांव में संघ कार्य की
क्या आवश्यकता है!’’ श्री गुरुजी ने उत्तर दिया – ‘‘यदि सारी दुनिया में एक
भी मुसलमान या एक भी इसाई नहीं होता और हमारे हिन्दू समाज की हालत ऐसी ही
रहती तो भी हम संघ कार्य करते’’.

IMG 20170118 WA0014भारतवर्ष हिन्दुओं का देश है – यह सत्य है. भारत में हिन्दू यहीं
पलेगा-बढ़ेगा, यह भी सत्य है. भारत में हिन्दुओं को संगठित और शक्तिशाली
बनाना है, यह भी सत्य है. ऐसे सत्य के अधिष्ठान पर संघ का कार्य स्थित है,
अपना कार्य सत्य एवं शुद्ध है. बादलों के कारण सूर्योदय नहीं हुआ, क्या कभी
किसी ने सुना है. किसी ने सुना है क्या बांध और पर्वतों के कारण नदी रुक
गई. अंग्रेज सरकार हमारा विरोध करती रही, फिर भी हम संघ कार्य को आगे
बढ़ाते रहे. कांग्रेस सरकार ने तीन बार प्रतिबंध लगाया, किन्तु हर बार संघ
ज्यादा शक्तिशाली होकर आगे बढ़ा. जब हमारे पास साधन नहीं थे, तब हमने परवाह
नहीं की. आज हमारे पास साधन हैं, तब भी हम सुखासीन नहीं हुए. ‘‘परम वैभवं
नेतुमेतत स्वराष्ट्रम्, समर्था भवत्वा शिषाते भृशम’’. इस मंत्र का हम रोज
जाप करते हैं. हमें संघ का कार्य करना है, करेंगे तो होगा, नहीं करेंगे तो
नहीं होगा. बाधाएं आती हैं तो आने दो. हम उसकी क्यों परवाह करें. मकर
संक्रांति के दिन गुड़ और तिल का लड्डू बनाते हैं तथा बांटते हैं. तिल
स्नेह का प्रतीक है और गुड़ मिठास का. परस्पर मिठास बांटते हुए, सभी के साथ
स्नेहपूर्ण व्यवहार करना है. संघ कार्य को आगे बढ़ाने के लिये परस्पर
मित्रता बनानी है.
साभार:: vskbharat.com

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