भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने अचानक राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले तुर्की के राजदूत के एक कार्यक्रम को रद्द कर दिया है।
यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब तुर्की के भारत-विरोधी रुख, पाकिस्तान के समर्थन, और हाल ही में बांग्लादेश व कश्मीर मामलों में दखल को लेकर भारत-तुर्की संबंधों में तनाव चरम पर है।
तुर्की के खिलाफ भारत का सख्त संदेश
MEA का यह फैसला तुर्की को स्पष्ट संदेश है कि भारत अब उसकी ‘हॉस्टाइल एक्टिविटीज’ और दक्षिण एशिया में हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं करेगा।
हाल ही में तुर्की समर्थित संगठनों द्वारा ‘Greater Bangladesh’ और कश्मीर को लेकर भड़काऊ गतिविधियों के बाद भारत ने कई स्तरों पर तुर्की के खिलाफ कूटनीतिक दबाव बढ़ाया है।
अब ‘कुर्दिस्तान’ पर चर्चा क्यों?
भारत में रणनीतिक और कूटनीतिक हलकों में अब यह चर्चा ज़ोर पकड़ रही है कि तुर्की की आंतरिक समस्याओं, खासकर कुर्दिस्तान (Kurdistan) के मुद्दे को वैश्विक मंचों पर उठाया जाए।
तुर्की लंबे समय से कुर्दों के अधिकारों को दबाता रहा है; अब भारत जैसे देश इस मुद्दे को मानवाधिकार और स्वायत्तता के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा सकते हैं।
इससे तुर्की पर दबाव बढ़ेगा और भारत को कूटनीतिक ‘लीवर’ मिलेगा, ठीक वैसे ही जैसे तुर्की कश्मीर, बांग्लादेश या अन्य भारतीय मुद्दों पर बोलता रहा है।
संभावित असर
तुर्की के खिलाफ भारत का रुख और सख्त हो सकता है-व्यापार, रक्षा और सांस्कृतिक रिश्तों में और कटौती संभव।
कुर्दिस्तान के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने से तुर्की की छवि और आंतरिक स्थिरता पर असर पड़ सकता है।
यह घटनाक्रम दक्षिण एशिया और वेस्ट एशिया में नई कूटनीतिक समीकरणों की शुरुआत का संकेत है।
राष्ट्रपति भवन में तुर्की दूतावास का कार्यक्रम रद्द करना भारत की ओर से तुर्की को सख्त कूटनीतिक संदेश है। अब ‘कुर्दिस्तान’ पर चर्चा और समर्थन की संभावना भारत-तुर्की संबंधों में नया मोड़ ला सकती है, जिससे तुर्की पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ेगा और भारत को रणनीतिक बढ़त मिलेगी।