भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate) का 1.9 बच्चों प्रति महिला तक गिरना एक महत्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव है, जो देश के धार्मिक जनसांख्यिकी संतुलन पर भी प्रभाव डालेगा। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 79.8% हिंदू और 14.2% मुस्लिम आबादी थी। लेकिन प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1950 से 2015 के बीच मुस्लिम आबादी का हिस्सा 9.84% से बढ़कर 14.09% हो गया, जबकि हिंदू आबादी 84.68% से घटकर 78.06% रह गई।
वर्तमान स्थिति और भविष्य के अनुमान
2024 में, भारत की कुल 143 करोड़ जनसंख्या में लगभग 110 करोड़ हिंदू (78.9%) और 20.48 करोड़ मुस्लिम (14.2-14.3%) हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के अनुमान के अनुसार, 2050 तक हिंदू आबादी 77% और मुस्लिम आबादी 18% तक पहुंच सकती है। इसका मतलब है कि भारत में मुस्लिम आबादी 31.1 करोड़ तक पहुंच सकती है, जिससे भारत दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम आबादी वाला देश बन सकता है, इंडोनेशिया को पीछे छोड़ते हुए।
गिरती प्रजनन दर का प्रभाव
गिरती प्रजनन दर का प्रभाव सभी धार्मिक समुदायों पर पड़ेगा, लेकिन इसका असर अलग-अलग हो सकता है:
- हिंदू-मुस्लिम अनुपात में बदलाव: 1951 में हिंदू-मुस्लिम जनसंख्या अनुपात 8.69:1 था, जो 2011 में घटकर 5.62:1 रह गया। यह अनुपात आगे और बदल सकता है, जिससे राजनीतिक और सामाजिक प्रतिनिधित्व के मुद्दे उठ सकते हैं।
- क्षेत्रीय असंतुलन: कुछ राज्यों और क्षेत्रों में धार्मिक जनसंख्या का अनुपात अलग-अलग है, जिससे क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ सकता है। यह स्थानीय राजनीति, संसाधनों के आवंटन और सामाजिक सद्भाव को प्रभावित कर सकता है।
- आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां: मुस्लिम समुदाय में शिक्षा, रोजगार और आर्थिक विकास के मुद्दे अभी भी चुनौतीपूर्ण हैं। सचर समिति की रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम आबादी नौकरियों, राजनीति और शिक्षा में अल्प-प्रतिनिधित्व का सामना करती है।
नीतिगत दृष्टिकोण और आगे की राह
- समावेशी विकास: सभी धार्मिक समुदायों का समान विकास सुनिश्चित करना, विशेष रूप से शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में।
- सामाजिक सद्भाव: धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव और समझ को बढ़ावा देना, जिससे सामाजिक तनाव कम हो और राष्ट्रीय एकता मजबूत हो।
- जनसंख्या नीति में संतुलन: जनसंख्या नीति में धार्मिक पहचान के बजाय सामाजिक-आर्थिक कारकों पर ध्यान केंद्रित करना।
- डेटा-आधारित नीति निर्माण: 2025 की जनगणना से मिलने वाले नए आंकड़ों का उपयोग करके समावेशी और संतुलित नीतियां बनाना।
भारत की विविधता और बहुलवाद इसकी ताकत है। गिरती प्रजनन दर के इस नए युग में, हमें धार्मिक जनसांख्यिकी के बदलते परिदृश्य को समझना होगा और ऐसी नीतियां बनानी होंगी जो सभी समुदायों के हितों की रक्षा करें और राष्ट्रीय विकास को बढ़ावा दें।