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भारत ने अमेरिका के ‘ले लो या छोड़ो’ डेटा समझौते को ठुकराया, कहा—8 जुलाई की डेडलाइन का कोई महत्व नहीं, डेटा पर कोई समझौता नहीं

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भारत ने अमेरिका के “Take it or Leave it” (ले लो या छोड़ो) प्रस्ताव को इसलिए खारिज किया है क्योंकि यह प्रस्ताव भारत की आर्थिक, डिजिटल और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी प्राथमिकताओं के खिलाफ था और इसमें आपसी समानता (reciprocity) का अभाव था। अमेरिका ने भारत से डेयरी, कृषि, डिजिटल सेवाओं और फार्मास्यूटिकल्स जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में अपनी कंपनियों को बिना शर्त पहुंच देने की मांग की थी, जबकि भारत के हितों के अनुरूप अमेरिका ने अपने बाजार खोलने या भारतीय श्रम-गहन निर्यातों और आईटी सेवाओं तक पहुंच आसान बनाने का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया।

भारत ने स्पष्ट किया कि डेटा स्थानीयकरण और डेटा प्रोटेक्शन से जुड़े नियमों में ढील देने से भारतीय नागरिकों की गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। अमेरिका चाहता है कि भारत डेटा लोकलाइजेशन के नियमों को कम करे, ताकि अमेरिकी टेक कंपनियों को भारतीय डेटा को विदेश में स्टोर और प्रोसेस करने की छूट मिल सके। भारत का मानना है कि इससे डेटा की सुरक्षा, गोपनीयता और भारतीय कानूनों का पालन करने की क्षमता कमजोर होगी।

इसके अलावा, अमेरिका के प्रस्ताव में भारतीय किसानों, छोटे उद्यमियों और फार्मास्यूटिकल उद्योग को नुकसान पहुंचाने की आशंका थी। अमेरिकी डेयरी उत्पादों में नॉन-वेजिटेरियन फीड का इस्तेमाल होता है, जिसे भारत ने अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप प्रतिबंधित किया है। फार्मास्यूटिकल्स के मामले में अमेरिका की सख्त और एकतरफा नियमावली भारत के लिए अनुचित थी, क्योंकि इससे भारतीय दवाओं के निर्यात पर असर पड़ सकता था।

भारत ने अमेरिका के इस दबाव को अपनी आर्थिक संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों के खिलाफ माना है। भारत का रुख स्पष्ट है—कोई भी समझौता आपसी सम्मान, समानता और भारत की प्राथमिकताओं के अनुरूप होना चाहिए, न कि एकतरफा शर्तों पर। इसलिए भारत ने “Take it or Leave it” प्रस्ताव को ठुकरा दिया और कहा कि डेटा, किसानों और देश की सुरक्षा पर कोई समझौता नहीं होगा।

भारत ने हाल ही में डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 (DPDPA) और उसके तहत जारी ड्राफ्ट रूल्स, 2025 को लागू करने की तैयारी की है। इन नियमों के तहत भारत सरकार ने डेटा फिड्यूशियरी को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे भारतीय नागरिकों का डेटा केवल सरकार द्वारा निर्धारित शर्तों और दिशा-निर्देशों के तहत ही विदेश भेज सकते हैं। इसका मतलब यह है कि अमेरिका या किसी अन्य देश के साथ डेटा शेयरिंग समझौता करने से पहले भारत सरकार की अनुमति अनिवार्य है।

अमेरिका ने भारत के साथ डेटा शेयरिंग का एक नया समझौता प्रस्तावित किया था, जिसमें कहा गया था कि भारत को 8 जुलाई तक इस समझौते को स्वीकार करना होगा, अन्यथा अमेरिकी कंपनियों और सरकारी एजेंसियों के साथ डेटा एक्सचेंज पर रोक लग सकती है। भारत ने इस प्रस्ताव को ‘अनुचित दबाव’ बताते हुए खारिज कर दिया है। भारतीय अधिकारियों ने स्पष्ट किया है कि भारत अपनी डेटा संप्रभुता, नागरिकों की गोपनीयता और राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देता है।

भारत के इस फैसले को डिजिटल इंडिया की नीति और नए डेटा प्रोटेक्शन कानून के अनुरूप माना जा रहा है। भारत सरकार का कहना है कि डेटा पर नियंत्रण और उसकी सुरक्षा किसी भी देश के साथ समझौते से ऊपर है। इसके साथ ही, भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि वह डेटा शेयरिंग के मामले में द्विपक्षीय या बहुपक्षीय समझौतों के लिए तैयार है, लेकिन उसमें भारत की शर्तें और हित सर्वोपरि होंगे।

भारत के इस रुख से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी डिजिटल संप्रभुता और नीति निर्धारण में स्वतंत्रता की छवि और मजबूत हुई है। भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी देश के दबाव में आकर अपने नागरिकों के डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता से समझौता नहीं करेगा।

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