संकट की घड़ी में भारत ने सीखा है — चुप्पी भी एक हथियार है। यह आत्मसमर्पण की चुप्पी नहीं, रणनीति की चुप्पी है। और 10 मई को, वह चुप्पी किसी बम से ज़्यादा गूंज रही थी।
हर बार वही दोहराव। भारत हमला करे तो आप कहें “तानाशाही”, भारत रुक जाए तो आप कहें “कमज़ोरी”। सच ये है — आपको मोदी से नफ़रत नहीं, भारत के मज़बूत होने से परेशानी है।
वही तथाकथित ‘सेक्युलर’ और ‘शांतिवादी’ तबका, जो हमेशा “युद्ध नहीं, शांति” की बात करता है — अब क्यों पूछ रहा है “सीज़फायर क्यों किया?”
विरोधाभास समझ नहीं आता? पाकिस्तानियों से भी ज़्यादा कन्फ्यूज़ हो आप।
और दाईं ओर? वो तो पूरी तरह से मार्वल मोड में चले गए हैं — “मोदी ही आयरन मैन हैं।”
अरे भाई, थोड़ा ठंड रखो। अभी खेल ख़त्म नहीं हुआ।
एक बात साफ़ कर लेते हैं: इंदिरा, इंदिरा थीं। मोदी, मोदी हैं।
दोनों ने इस देश को आगे बढ़ाया, अपने-अपने तरीके से।
लेकिन यह तुलना छोड़ो — असली बात समझो:
यह मसल पावर की लड़ाई नहीं, शतरंज की चाल है।
जब टीवी ऐंकर चिल्ला रहे थे, भारत खामोश था।
और जब भारत खामोश होता है — वो पहले ही तीन चालें आगे होता है।
यह प्रेस कॉन्फ्रेंस की लड़ाई नहीं थी। यह डिजिटल युद्ध था — ऐसा सिद्धांत जो दुनिया ने कभी नहीं देखा
10 मई: मनोवैज्ञानिक वर्चस्व का दिन
अब ज़रा तथ्यों पर नज़र डालिए:
भारत की ज़मीन पर कोई मिसाइल नहीं गिरी।
कोई ड्रोन सीमा के भीतर नहीं आया।
फिर भी रावलपिंडी जल उठा।
100+ आतंकवादी मारे गए।
मसूद अज़हर का पूरा परिवार — समाप्त।
जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर मुख्यालय — तबाह।
11 एयरबेस — खाक।
2 परमाणु ठिकाने — हिलाए गए।
चीनी हथियार — एक्सपोज़।
अमेरिकी कूटनीति — शर्मिंदा।
रडार स्टेशन — नेस्तनाबूद।
और अंत में एक सीज़फायर — घबराकर मांगा गया।
अब चीन चिढ़ा बैठा है। पाकिस्तान हांफ रहा है।
श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश? अब बहुत सोच-समझकर बात कर रहे हैं दिल्ली से
असली बात क्या थी?
भारत ने सिर्फ अपनी सीमाएं नहीं बचाईं —
सीमा की परिभाषा ही बदल दी।
और ये सब बिना सैनिक, बिना झंडा, बिना शोर-शराबे।
यह था — डिजिटल सटीकता वाला युद्ध।
शांत। सटीक। विनाशकारी।
इज़राइल जैसा — मगर बड़ा।
नाटो जैसा — मगर अकेला।
यह सिर्फ कोई ऑपरेशन नहीं था।
यह एक संकेत था।
बीजिंग को
ब्रुसेल्स को
वॉशिंगटन को
पूरे एशिया के रडार पर चमकती हर स्क्रीन को
भारत को उकसाना नहीं चाहिए।
भारत को कमज़ोर समझना भूल है।
अब आगे क्या?
जब लोग बहस कर रहे हैं — कौन ज़्यादा साहसी था, इंदिरा या मोदी —
तब असली भविष्य अपनी चालें चल चुका है:
भारत के रक्षा निर्यात में जबरदस्त उछाल आएगा।
रणनीतिक साझेदारियां भारत की ओर झुकेंगी।
भारतीय तकनीक अब नाटो के युद्ध-कक्षों तक गूंजेगी।
भू-राजनीतिक संतुलन — अब भारत के चारों ओर घूमेगा।
आने वाले हफ्तों में दो चीज़ें होंगी:
1. प्रचार युद्ध — चीन और पाकिस्तान मिलकर झूठी कहानियाँ फैलाएंगे।
2. रणनीतिक मौन — भारत चुप रहेगा। शोर नहीं करेगा।
क्योंकि जब आप तीन चालें आगे होते हो,
आप दुनिया को खुद से सामंजस्य बैठाने देते हो।
यह युद्ध नहीं था — यह अपरिहार्यता थी।
भारत ने सिर्फ सीमा की रक्षा नहीं की
समय की रेखा मोड़ दी।
हम एक नए सिद्धांत के साक्षी बन रहे हैं
जो चिल्लाता नहीं, दुनिया की हकीकत बदल देता है।
सवाल ये नहीं कि भारत सुपरपावर बना या नहीं —
सवाल ये है कि हम आपस में लड़ते रहेंगे, या इसे पहचानेंगे?
“पाकिस्तानी प्रेमियों” के लिए यह लेख नहीं है।
यह उन लोगों के लिए है जो भारत को उसके सही रूप में देख सकते हैं — और देखना चाहते हैं।