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बलूचिस्तान की आज़ादी के लिए भारत से अपील: बलोच अमेरिकन कांग्रेस की प्रधानमंत्री मोदी को चिट्ठी

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प्रकाशित तिथि: 23 मई, 2025




भूमिका
बलूचिस्तान—एक ऐसा भूभाग जो दशकों से संघर्ष, दमन और उपेक्षा का प्रतीक बना हुआ है। पाकिस्तान द्वारा 1948 में जबरन कब्जा किए गए इस क्षेत्र के लोगों ने वर्षों से आज़ादी और आत्म-सम्मान की लड़ाई लड़ी है। हाल ही में, बलोच अमेरिकन कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. तारा चंद बलोच ने भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को एक खुला पत्र लिखकर बलूचों की आज़ादी के लिए भारत से नैतिक, राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन की अपील की है।




प्रधानमंत्री मोदी से उम्मीदें
पत्र में डॉ. तारा चंद ने प्रधानमंत्री मोदी द्वारा 2016 में लाल किले से दिए गए उस ऐतिहासिक भाषण का उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने बलूचिस्तान का नाम लेकर पाकिस्तान के दमनकारी रवैये की ओर दुनिया का ध्यान खींचा था। इस भाषण से बलूचों को आशा की किरण दिखी थी, और अब एक बार फिर उन्हें भारत से उम्मीद है।




बलूचिस्तान में पाकिस्तान का अत्याचार
डॉ. तारा चंद ने लिखा कि 1948 से लेकर आज तक, पाकिस्तान ने बलूचों के साथ बर्बरता की है। हज़ारों बलूच नागरिकों को अगवा किया गया, मारा गया और उनका जबरन विस्थापन किया गया। उन्होंने इसे एक “नरसंहार” बताया, जिसे आज की वैश्विक शक्तियाँ भी नज़रअंदाज़ कर रही हैं।




चीन की दखल और नया उपनिवेशवाद
पत्र में यह भी चेतावनी दी गई कि अब चीन भी इस क्षेत्र में उपनिवेशवादी भूमिका में उतर चुका है। इसका उद्देश्य केवल संसाधनों का दोहन नहीं, बल्कि बलूचों की आवाज़ को हमेशा के लिए कुचल देना है।




भारत की भूमिका और रणनीतिक अवसर
बलोच अमेरिकन कांग्रेस का मानना है कि एक स्वतंत्र बलूचिस्तान भारत के लिए सामरिक दृष्टि से वरदान सिद्ध हो सकता है। उन्होंने भारत से आग्रह किया कि वह पाकिस्तान अधिकृत बलूचिस्तान को अपने आधिकारिक भाषणों में नामित करें और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब करें।




सिंधु जल संधि और नई विदेश नीति
पत्र में प्रधानमंत्री द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने के निर्णय की सराहना की गई है। इसे पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश के रूप में देखा गया कि अब पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते।




निष्कर्ष: एक नई शुरुआत की आशा
बलूच लोग आज़ादी के लिए लड़ते रहे हैं, लेकिन उन्हें वैश्विक समर्थन की आवश्यकता है। भारत, विशेषकर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में, इस संघर्ष में एक नैतिक और रणनीतिक सहयोगी बन सकता है। यह न केवल बलूचों के लिए बल्कि भारत के लिए भी 21वीं सदी की नई विदेश नीति का सूत्रपात हो सकता है।




क्या भारत बलूचिस्तान के पक्ष में निर्णायक कदम उठाएगा? क्या अब समय आ गया है कि भारत अपने पड़ोसी देशों में मानवाधिकारों के लिए एक मजबूत आवाज बने?

आपकी राय हमें ज़रूर बताएं।

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