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न्यूज़ीलैंड में कट्टरपंथी नेता ने हिंदू प्रतीकों का किया अपमान, पीएम मोदी ने पहले ही दी थी चेतावनी

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न्यूज़ीलैंड के ऑकलैंड शहर में हाल ही में धार्मिक असहिष्णुता का एक गंभीर मामला सामने आया है। डेस्टिनी चर्च के कट्टरपंथी नेता ब्रायन तमाकी ने “Faith, Flag, and Family” नामक विरोध मार्च के दौरान हिंदू, सिख, बौद्ध समुदायों के धार्मिक झंडों और प्रतीकों को सरेआम फाड़ा और पैरों तले रौंदा। मार्च के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने हर बार झंडा फाड़ने के बाद पारंपरिक माओरी हाका डांस भी किया, जिसे कई लोगों ने इस संदर्भ में अपमानजनक माना। तमाकी ने खुलेआम कहा कि न्यूज़ीलैंड में गैर-ईसाई धर्मों का प्रसार “नियंत्रण से बाहर” हो गया है और अब समय आ गया है कि “आधिकारिक धर्म” के रूप में केवल ईसाई धर्म को ही मान्यता मिले। उन्होंने प्रवासियों और खासकर सिख समुदाय पर भी भड़काऊ टिप्पणियां कीं, जिसमें आरोप लगाया कि वे स्थानीय लोगों को रोजगार नहीं देते और “सिर्फ अपने लोगों को ही काम पर रखते हैं”।

इस घटना के बाद न्यूज़ीलैंड की राजनीति और समाज में तीखी प्रतिक्रिया हुई है। तमाकी की नफरत भरी बयानबाजी और धार्मिक प्रतीकों के अपमान की देश-विदेश में कड़ी आलोचना हो रही है। कई सामाजिक और धार्मिक संगठनों ने सरकार से ऐसे घृणा अपराधों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है।

इस बीच, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मार्च 2025 में ही न्यूजीलैंड के प्रधानमंत्री क्रिस्टोफर लकसन के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता में वहां बढ़ रही “एंटी-इंडिया” और कट्टरपंथी गतिविधियों पर चिंता जताई थी। पीएम मोदी ने साफ कहा था कि भारत और न्यूज़ीलैंड आतंकवाद, अलगाववाद और कट्टरता के खिलाफ मिलकर काम करेंगे और भारत को उम्मीद है कि न्यूजीलैंड सरकार ऐसे अवैध तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगी। विदेश मंत्रालय ने भी स्पष्ट किया था कि भारत ने खालिस्तानी और अन्य चरमपंथी गतिविधियों को लेकर अपनी चिंता न्यूज़ीलैंड सरकार तक पहुंचाई है, और वहां की सरकार ने इन मुद्दों को गंभीरता से लिया है।

यह घटनाक्रम दिखाता है कि कैसे कुछ कट्टरपंथी तत्व धार्मिक सहिष्णुता और सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। भारत सरकार ने पहले ही इस खतरे को भांपते हुए न्यूज़ीलैंड को आगाह किया था, और अब इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग और सतर्कता और बढ़ने की संभावना है।

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