Vishwa Samvad Kendra Jodhpur

TRANDING
TRANDING
TRANDING

तुम मुझे चेनाब कहते हो — एक नदी, एक सीमा, एक लकीर मात्र।

Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email

मैं चंद्रभागा हूँ।

तुम मुझे चेनाब कहते हो — एक नदी, एक सीमा, एक लकीर मात्र।
पर मैं… मैं कोई साधारण जलधारा नहीं।
मैं युगों की गवाह हूँ। मैं इतिहास की रचना हूँ। मैं प्रेम की पहली गाथा हूँ।

मैं उस समय से बह रही हूँ,
जब ऋषि मुझे “असिक्नी” कहते थे —
गंभीर, गूढ़ और कालिमा लिए हुए।
उन यज्ञों की ध्वनि अब भी मेरी लहरों में है।
जब सप्तसिंधु का आह्वान होता था,
तो मेरा नाम भी उसी श्रद्धा से लिया जाता था
जैसे गंगा या सरस्वती का।
मेरे तट पर अग्नि जली,
सृष्टि के बीज डाले गए,
और संस्कृति का पहला अंकुर फूटा।

मैं चंद्रमा की संतान थी।
उज्ज्वल, शांत, स्वर्ग से धरा पर आई थी।
पर जब मैंने राजा शिबि से प्रेम किया —
वह जो सत्य, त्याग और धर्म का प्रतीक था —
देवताओं ने मुझे शापित कर दिया।
“तुमने स्वर्गीय नियम तोड़े,” उन्होंने कहा।
“अब बहो — चिरकाल तक।”
मैं पिघल गई —
आँसुओं की नदी बन गई।
वही आँसू आज चेनाब हैं।

फिर एक दिन आया —
मुझ पर घोड़ों की टापें गूंजने लगीं।
सिकंदर मेरी लहरों को चीरते हुए आया था।
उसके रथों की ध्वनि, उसकी सेना की गर्जना —
सब मुझमें समा गईं।
उसने सोचा था कि मुझे बाँध लेगा।
पर मैंने… मैंने उसकी सबसे प्रिय वस्तु छीन ली —
बुसेफलस, उसका घोड़ा, मेरी गहराई में सदा के लिए खो गया।
कभी-कभी आज भी उसकी हिनहिनाहट मेरी लहरों में सुनाई देती है।

फिर आए चंद्रगुप्त और अशोक।
उनके दूत, उनके व्यापारी, उनके भिक्षु —
सब मेरी घाटियों से गुजरे।
मेरी धाराएं बनीं बौद्ध धर्म का मार्ग,
और मेरे किनारों पर बने मठ, गुफाएं और आश्रम।
मेरी लहरों पर बुद्ध की करुणा बहने लगी।

मेरी छाया में बैठे गोरखनाथ,
मेरी घाटियों में ध्यानमग्न हुए कश्यप ऋषि।
त्रिलोकीनाथ की गुफाओं में शिव और बुद्ध दोनों की उपस्थिति थी।
मैं कोई एक धर्म की नहीं थी —
मैं स्वयं धर्म थी।
जो भी मेरी शरण में आया, उसे शांतिपथ मिला।
मेरी धारा कभी जाति-पंथ नहीं पूछती।
मैं सबकी माँ हूँ।

आज मेरी लहरों के ऊपर एक सेतु खड़ा है —
एक ऐसा पुल, जो इंसानी साहस, विज्ञान और संकल्प का प्रतीक है।

यह पुल मेरे और इंसान के बीच एक नया संवाद है।
यह सेतु उस एकता का चिह्न है, जिसके लिए मैंने युगों से बहना स्वीकारा।
इस पुल से होकर अब प्रेम, प्रगति और पहचान बहती है।
अब कोई पहाड़ मेरे बच्चों को बाँट नहीं सकता —
मैं सबको जोड़ती हूँ। और यह पुल भी।

मैं चंद्रभागा हूँ।
मैं वह नहीं जो केवल नक्शों में बहती है।
मैं वह हूँ —
जो युगों से हृदयों में बह रही हूँ।

Facebook
Twitter
LinkedIn
Telegram
WhatsApp
Email
Tags
Archives
Scroll to Top