भारत के इतिहास में अनेक महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने जीवन से न केवल धर्म की रक्षा की, बल्कि मानवता, शांति और सहिष्णुता का भी संदेश दिया। इन्हीं में से एक हैं सिक्खों के पाँचवें गुरु – श्री गुरु अर्जुन देव जी, जिनका जीवन समर्पण, त्याग और शांति का प्रतीक है।
✨ जीवन परिचय:
जन्म: 15 अप्रैल 1563
मृत्यु: 30 मई 1606
गुरु अर्जुन देव जी का जन्म गुरु रामदास जी और माता भानी जी के घर हुआ। वे पाँचवें नानक कहलाते हैं।
🕊️ शांति का सरताज:
गुरु अर्जुन देव जी को “शांतिपुंज” और “शहीदों के सरताज” कहा जाता है। उन्होंने सिख परंपरा में बलिदान की नींव रखी और इस परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
📖 ग्रंथ निर्माण में ऐतिहासिक योगदान:
उन्होंने आदि ग्रंथ (अब “गुरु ग्रंथ साहिब”) का संकलन किया, जिसमें भक्ति संतों, सूफी कवियों और पूर्व गुरुओं की वाणी को स्थान दिया।
उन्होंने 30 रागों में अपनी वाणी को गुरुग्रंथ साहिब में संकलित किया, जो साहित्य, दर्शन और आध्यात्मिकता का अनमोल खजाना है।
🔥 बलिदान का अमर उदाहरण:
गुरु अर्जुन देव जी पहले सिख गुरु थे जिन्होंने धार्मिक असहिष्णुता और अत्याचार के विरुद्ध प्राणों की आहुति दी।
उन्हें जबरन इस्लाम कबूल करने के लिए यातनाएँ दी गईं, लेकिन उन्होंने सत्य और धर्म से समझौता नहीं किया।
30 मई 1606 को लाहौर में उन्हें उबलते पानी और तपते लोहे पर बैठाकर शहीद किया गया।
🌿 उनका संदेश आज भी प्रासंगिक है:
गुरु जी की वाणी न केवल धार्मिक ग्रंथों में अमूल्य है, बल्कि उन्होंने मानवता, क्षमा, सेवा और सह-अस्तित्व का जो सन्देश दिया, वह आज भी हमें प्रेरित करता है।
> “जो धर्म के लिए जिए, वही सच्चा जीवन है।”
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गुरु अर्जुन देव जी की शहादत ने सिख धर्म को एक नई दिशा दी। उन्होंने यह दिखा दिया कि आत्म-बलिदान ही सच्चे जीवन मूल्यों की रक्षा का मार्ग है। आज जब हम उनकी पुण्यतिथि पर उन्हें स्मरण करते हैं, तो हमें भी यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपने जीवन में सत्य, करुणा और साहस को स्थान देंगे।
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