हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक अहम बयान में कहा:
“कोई भी संस्था सर्वोच्च नहीं है। सभी—विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका—हमारे संविधान के अंग हैं। लेकिन यह बुनियादी है कि हर संस्था अपनी-अपनी संवैधानिक सीमाओं का पालन करे।
संवैधानिक सीमाओं का उल्लंघन डरावना है। यह लोकतांत्रिक शासन को झकझोर देता है। लोकतंत्र एक किला है, जिसकी ताकत उसकी अखंडता में है, लेकिन जब उसमें सेंध लगती है तो वह बेहद कमजोर हो जाता है।
इस समय, मैं गहरी चिंता के साथ कह सकता हूँ कि हमारी संवैधानिक संरचना दिन-ब-दिन तनावग्रस्त और नाजुक होती जा रही है, क्योंकि संस्थाएँ बार-बार एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रही हैं।
डॉ. आंबेडकर ने संविधान सभा में कहा था, ‘हमारे संविधान की सफल कार्यप्रणाली इस बात पर निर्भर करती है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच की सीमाओं का पालन किया जाए।’”
No institution is superior. All are our organs of the Constitution, be it the legislature, the judiciary, or the executive. But it is fundamental that each institution maintains what I call constitutional boundary limitations.
— Vice-President of India (@VPIndia) May 19, 2025
Constitutional transgressions are terrifying. They… pic.twitter.com/t83aMgSxxe
जगदीप धनखड़ का यह बयान हाल के दिनों में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच बढ़ते टकराव और अधिकार क्षेत्र के उल्लंघन की पृष्ठभूमि में आया है।
उन्होंने संविधान की मूल भावना, संस्थाओं की मर्यादा और लोकतंत्र की मजबूती के लिए आपसी सीमाओं के सम्मान की आवश्यकता पर जोर दिया।
यह बयान संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर की चेतावनी की याद दिलाता है, जिसमें उन्होंने संस्थाओं के बीच संतुलन को लोकतंत्र की सफलता की कुंजी बताया था।
धनखड़ का यह वक्तव्य देश के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूत बनाए रखने के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है—
हर संस्था अपनी संवैधानिक सीमा में रहे, तभी लोकतंत्र सुरक्षित और सशक्त रह सकता है।