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ईसाई-इस्लामीकरण की ओर नेपाल !

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आर.एल.फ्रांसिस
 

नेपाल के समक्ष भविष्य में समस्याएं कम नहीं होंगी, इसके पीछे एक साजिश है। कुछ  शक्तियां सालों से नेपाल का ईसाई-इस्लामीकरण कर रही थीं। उनको प्रलोभन दिया जा रहा था। नेपाल का हिन्दू राष्ट्र न होने से सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही होगा। इससे नेपाल में पाकिस्तान, चीन और वैटिकन की घुसपैठ बढ़ जाएगी।

साम्यवादी विचारधारा वाले तथा ईसाई धर्मप्रसार के लिए प्रतिकूल चीन पर मात करने हेतु ईसाई राष्ट्रों की दृष्टि
से नेपाल एक महत्त्वपूर्ण देश है । वह वहां रहने वाले थारू व मधेशियों को सबसे पहले टारगेट करेंगे और इनका धर्म परिवर्तन कराएंगे।

भारत के एक विश्वस्त पड़ोसी नेपाल का धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में नया जन्म हो गया है। देखा जाए हिन्दू
राष्ट्र की कब्र पर धर्मनिरपेक्ष गणराज्य नेपाल का जन्म हुआ है। इसके दुष्परिणाम क्या होंगे? क्या भारत के लोगों ने इसकी चिंता की है? शायद नही!  लेकिन आने वाले दिनों में इसके गलत परिणाम देखने को मिलेंगे। क्योंकि अब नेपाल में ईसाई-इस्लामीकरण की प्रक्रिया तेज हो जाएगी। ईसाई और इस्लामिक संगठन पहले से ही नेपाल में प्रलोभन, भय का वातावरण कायम किए हुए हैं।

भारत की तरह ही नेपाल के दूरदराज के आदिवासी और अन्य वंचित तबका ईसाई-इस्लामिक जाल में फंसते चले जा रहे हैं।

नेपाल को फिर से हिंदू राष्ट्र की मांग उठ रही है। धर्मनिरपेक्ष गणराज्य बनने के बाद पूरे देश में हिंसा भड़क गई है।नेपाल में रहने वाले हिंदू, थारू व मधेशीसमुदाय के लोग इस संविधान का विरोध कर रहे हैं। उनको डर है कि अब उनको जबरनईसाई या मुसलमान बना देंगे। सच भी यही है देर-सवेर ऐसा होगा भी! इसे हिंदुओ व उनके हिंदुत्व प्रचार के नारे की हार कहा जाएगा।

साम्यवादी विचारधारा वाले तथा ईसाई धर्मप्रसार के लिए प्रतिकूल चीन पर मात करने हेतु ईसाई राष्ट्रों की दृष्टि से नेपाल एक महत्त्वपूर्ण देश है। साथ ही पाकिस्तानी तथा बांग्लादेशी जिहादी आतंकवादियों के लिए भारत में प्रवेश हेतु नेपाल एक सरल मार्ग बन चुका है।
ऐसा दिखाई देता है कि नेपाल के ‘हिन्दू राष्ट्र’ होने अथवा वहां पर हिन्दुत्वनिष्ठ राजसत्ता होने की बात विस्तारवादी ईसाई राष्ट्रों अथवा जिहादी इस्लामी राष्ट्रों को मान्य नहीं। नेपाल की 26 मिलियन जनसंख्या में 81 फीसदी हिंदू, 9 फीसदी बौद्ध,  4.4 फीसदी मुस्लिम और 1.4 फीसदी ईसाई हैं।
देश  में ईसाई आबादी तेज़ी से बढ़ रही है और वे नेपाली हिंदुओं को मुफ्त शिक्षा, नौकरियां देकर उनका धर्मांतरण कर रहे हैं। ईसाई समूह कहते हैं कि धर्मांतरण हो रहे हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए प्रोत्साहन हेतु आर्थिक अथवा दूसरी तरह के सहयोग की बातों से इन्कार किया है।

नेशनल काउंसिल फोर चर्चेज़ इन नेपाल (नेपाल की राष्ट्रीय चर्च परिषद) के महासचिव के. बी. रोकाया ने कहा कि ईसाई अब स्वतंत्रतापूर्वक अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू इसलिए धर्मांतरण कर रहे हैं क्योंकि उनमें से कई कठोर जाति व्यवस्था से उत्पीड़ित और महंगे धार्मिक कृत्यों से दबा हुआ महसूस करते हैं।
नेपाल के उत्तरी पहाड़ी इलाकों तथा दक्षिणी पठार के कुछ जिलों में अचानक लोग ईसाई बनने लगे हैं।
नेपाल का हिन्दू राजतंत्र समाप्त हुआ तथा माओवादियों द्वारा नया “सेकुलर” अंतरिम संविधान अस्तित्त्व में लाया गया, उसी दिन से मानो विदेशी मिशनरी संस्थाओं की बाढ़ सी आ गई। यहाँ तक कि ईसाई धर्मांतरण की बढ़ती घटनाओं के कारण वहाँ नेताओं को इस नए अंतरिम संविधान में भी “धार्मिक मतांतरण” पर रोक लगाने का प्रावधान करना पड़ा।
नए संविधान में भी जबरन धर्मांतरण पर पांच साल की जेल का प्रावधान किया गया है। परन्तु इसके बावजूद मिशनरी संस्थाएँ अपना अभियान निरंतर जारी रखे हुए हैं,  मिशनरी संस्थाओं की माँग है कि “स्वैच्छिक धर्म परिवर्तन” पर कोई रोक नहीं होनी चाहिए। एक “सेक्यूलर लोकतंत्र” का तकाज़ा है कि व्यक्ति जो चाहे वह धर्म चुनने के लिए स्वतन्त्र हो।
नेपाल में हुई जनगणना के अनुसार देश में ईसाइयों की जनसंख्या में 1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। 10 वर्ष पूर्व हुई
जनगणना में ईसाइयों की संख्या नेपाल की कुल आबादी 26 मिलयन का 0.4 प्रतिशत थी जो बढ़कर 1.4 हो गयी है। एक प्रोटेस्टंट सी. बी. गहतराज के अनुसार उनकी कुल संख्या जनगणना की रिपोर्ट से अधिक होनी चाहिये। उन्होंने कहा कि सेन्सस के समय कई नये ख्रिस्तियों ने भयवश अपने वास्तविक धर्म को नहीं बतलाया और इसलिये उन्हें हिन्दु दिखलाया गया है। इसके साथ ऐसे लोग जनगणना के दरमियान उपस्थित नहीं थे उन्हें भी हिन्दुओं के रूप में दिखलाया गया है। मस्जिदों से ज्यादा गिरजाघरों की संख्या नेपाल में है । दिल्ली स्थित पोप के राजदूत नेपाल के कैथोलिक चर्च का भी मार्गदर्शन कर रहे हैं।
हिंदू राजशाही से एक धर्मनिरपेक्ष, संघीय लोकतंत्र के रूप में परिवर्तित होने से नेपाल की समस्याएं भविष्य में कम नहीं होंगी। इसके पीछे एक साजिश है। कुछ शक्तियां सालों से नेपाल का ईसाई -इस्लामीकरण कर रही थीं। संघीय गणराज्य नेपाल में अब महिलाओं को विदेशी पुरुष से शादी करने पर अपने बच्चों को नेपाली नागरिकता हासिल करने का अधिकार भी दिया जाएगा। इसका खामियाजा भविष्य में नेपाल को भुगतना पड़ेगा।

नेपाल का हिन्दू राष्ट्र न होने से सबसे ज्यादा नुकसान भारत को ही होगा। इससे नेपाल में पाकिस्तान, चीन और वैटिकन की घुसपैठ बढ़ जाएगी। वह वहां रहने वाले थारू व मधेशियों को सबसे पहले टारगेट करेंगे और इनका धर्मपर्विन कराएंगे।

इनका मकसद यही रहेगा, नेपाली इतिहास से  हिन्दू शब्द को जल्द से जल्द मिटाना। नेपाल के माथे से हिन्दू शब्द हटने से कई देशों को खुशी हो रही है। नेपाल को कुछ अदृश्य शक्तियां जल्द ईसाई-इस्लामीकरण की पोशाक पहनाना चाहती हैं।

 साभार :: न्यूज़ भारती

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