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आरएसएस के कार्यकर्ताओं की केरल में हत्या: माकपा का लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला


राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले द्वारा नई दिल्ली में
अगस्त
4
को  आयोजित एक संवादददता सम्मेलन में जारी किया गया
वक्तव्य
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आरएसएस के कार्यकर्ताओं की केरल में हत्या: माकपा का
लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला
नई दिल्ली 4 अगस्त 17 राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के बस्ती कार्यवाह एस. एल. राजेश
(34)
की निर्मम हत्या
ने एक बार पुन: माकपा द्वारा की जा रही हत्याओं की राजनीति
की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है।  राजेश जी 
तिरुवनंतपुरम के निकट एडवाकोड के बस्ती कार्यवाह थे। पिछले
12 महीनों में यह
संघ के
13वें कार्यकर्ता
की हत्या है
, इसके अलावा भाजपा
की एक महिला कार्यकर्ता को जिंदा जलाया गया।

माकपा की हत्या
की राजनीति का लंबा इतिहास है। वर्ष
1969 में पहली बार केरल में संघ के कार्यकर्ता की हत्या की गई
थी जब मार्क्सवादी नेताओं को लगा कि राष्ट्रीयता से परिपूर्ण इस संगठन का प्रभाव
क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है। तब से अब तक लगभग
300 स्वयंसेवकों की माकपा कार्यकर्ताओं द्वारा
हत्या की जा चुकी है। कम्युनिस्टों के बीच इसे
कन्नूर मॉडलका नाम दिया गया है।

आपातकाल (1975-77) के बाद जब बड़ी
संख्या में कम्युनिस्ट कार्यकर्ता संघ की ओर आ रहे थे
, उस समय इन
हत्याओं में  कई गुना वृद्धि हुई। इतिहास
इस बात का गवाह है कि  हिंसा और हत्याओं का
यह दौर केवल संघ बनाम माकपा नहीं है
, जैसा कि कई बुद्धिजीवियों ने प्रदर्शित करने का प्रयास किया
है
; बल्कि  यह संघर्ष माकपा बनाम सभी अन्य है। जो कोई भी
माकपा के अत्याचार और अन्याय के खिलाफ खड़ा होने का प्रयास करता है
, फिर भले ही वह
माकपा का कार्यकर्ता
, क्यों न हो, उसे हिंसा का
शिकार होना पड़ता है।

संघ के खिलाफ
इतनी हिंसा होने के बाद भी हमने हमेशा बातचीत से मामला सुलझाने का प्रयास किया
, अब तक तीन बार हम
ऐसा प्रयास कर चुके हैं। हर बार इसकी प्रतिक्रिया में यां तो किसी स्वयसंवेक की
निर्मम हत्या कर दी जाती है यां हमारा 
उपहास किया जाता है। दुख की बात ये है कि केरल की पुलिस भी मार्क्सवादी
यूनियन की तरहं काम करती है। ऐसे किसी भी मामले में निष्पक्ष जांच नहीं करने दी जा
रही है। केरल में कम्युनिस्टों के प्रभुत्व के मूल में
पार्टी के गांवहैं। ये वे गांव
हैं जहां माकपा का एकछत्र आधिपत्य है
, कोई अन्य राजनीतिक दल यहां अपनी कोई गतिविधि नहीं कर सकता
है
, यहां तक कि
चुनावों में यहां प्रचार करना भी संभव नहीं हो पाता है। मुख्यमंत्री श्री पिणराई
विजयन स्वयं कन्नूर से हैं तथा उन पर राजनीतिक हत्याओं का आरोप है। जब से उन्होंने
राज्य में कमान संभाली है तब से यह हिंसक राजनीतिक चरमोत्कर्ष पर पहुंच गई
है।  केरल में माकपा के राज्य सचिव के.
बालाकृष्णन भी कन्नूर से हैं और ऐसे 
आपराधिक तत्वों को प्रश्रय दे रहे हैं जो कन्नूर से बाहर निकलकर
तिरूवनंतपुरम में जा पहुंचे हैं और अब पूरे राज्य में हिंसा फैला रहे हैं।

हमारे ऐसे
स्वयंसेवकों पर हमला किया जा रहा है जो अत्यंत सामान्य परिवारों  व पिछड़ी जातियों से हैं। यह केवल संघ पर ही
हमला नहीं है बल्कि मानवाधिकारों का उल्लंघन और देश में लोकतांत्रिक मूल्यों पर
हमला है। इस मामले में सभी संबद्ध पक्षों
केंद्र सरकार, मीडिया, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं तथा राजनीतिक दलोंको गंभीरता से इस विषय को लेना चाहिए और
उपयुक्त कार्यवाही कर संविधान के दायरे में रहते हुए
ईश्वर के इस अपने
स्थान (गॉड्स ओन कंट्री)

को असहिष्णु
कम्युनिस्ट व इस्लामिक विचारधाराओं से बचना चाहिए।
सोशल शेयर बटन

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