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यूके-मॉरीशस चागोस द्वीपसमूह समझौता: भारत के लिए महत्व और भूमिका

  • क्या है समझौता?
    मई 2025 में यूनाइटेड किंगडम (यूके) और मॉरीशस ने एक ऐतिहासिक समझौता किया, जिसमें चागोस द्वीपसमूह (जिसमें डिएगो गार्सिया शामिल है) की संप्रभुता ब्रिटेन से मॉरीशस को सौंपने पर सहमति बनी। इस समझौते के तहत यूके और अमेरिका को डिएगो गार्सिया सैन्य अड्डे का 99 साल तक संयुक्त उपयोग करने की अनुमति दी गई है। इसके बदले यूके मॉरीशस को अरबों पाउंड की आर्थिक सहायता देगा।
  • भारत के लिए महत्व
    • भारत ने हमेशा मॉरीशस के दावे का समर्थन किया है और उपनिवेशवाद के विरोध तथा क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांत को आगे बढ़ाया है।
    • यह समझौता हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता लाता है, जो भारत के लिए सामरिक और आर्थिक दृष्टि से बेहद अहम है।
    • डिएगो गार्सिया सैन्य अड्डा क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, और अब संप्रभुता स्पष्ट होने से समुद्री सहयोग और पारदर्शिता बढ़ेगी।
    • यह अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुरूप है, जिनका भारत ने समर्थन किया था।
  • भारत की भूमिका
    • भारत ने इस समझौते का स्वागत किया और मॉरीशस के दावे का समर्थन दोहराया।
    • भारत मॉरीशस के साथ समुद्री सुरक्षा, एंटी-पायरेसी, और आर्थिक विकास में सहयोग को बढ़ाएगा।
    • मॉरीशस में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भारत की सक्रिय भूमिका क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाए रखने में मदद करेगी।

      यूके-मॉरीशस चागोस द्वीपसमूह समझौता हिंद महासागर क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम है। भारत ने इसे उपनिवेशवाद के अंत, क्षेत्रीय स्थिरता और अंतरराष्ट्रीय कानून की जीत के रूप में देखा है। भारत की भूमिका मुख्यतः राजनयिक, रणनीतिक और सुरक्षा सहयोग बढ़ाने की है।
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