महर्षि वाल्मीकि भारतीय संस्कृति के उन महान ऋषियों में से हैं, जिनका योगदान न केवल साहित्य के क्षेत्र में बल्कि संपूर्ण मानव सभ्यता के नैतिक मार्गदर्शन में भी अद्वितीय है। उनका जन्म दिवस वाल्मीकि जयंती प्रत्येक वर्ष आश्विन पूर्णिमा के दिन श्रद्धा और आदर के साथ मनाया जाता है। यह दिन उस महापुरुष की स्मृति को नमन करने का अवसर है, जिन्होंने मानवता को ‘रामायण’ जैसी अमर कृति प्रदान की।
महर्षि वाल्मीकि का जीवन परिचय
वाल्मीकि जी का प्रारंभिक जीवन बहुत साधारण था। कहा जाता है कि उनका नाम पहले रत्नाकर था और वे एक शिकारी या डाकू के रूप में जीवन यापन करते थे। किंतु नारद मुनि के उपदेश और आत्मबोध से उनमें अद्भुत परिवर्तन आया। उन्होंने तपस्या, साधना और आत्मचिंतन के मार्ग को अपनाया, जिससे वे ‘वाल्मीकि’ कहलाए — अर्थात वह जो ‘वल्मीक’ (चींटियों के बिल) से उत्पन्न हुआ हो।
यह परिवर्तन बताता है कि जब मनुष्य में आत्मजागरण होता है, तो वह किसी भी परिस्थिति से उठकर दिव्यता को प्राप्त कर सकता है।
रामायण की रचना
वाल्मीकि जी ने अपनी तपस्या और ज्ञान के बल पर ‘आदिकाव्य’ – रामायण की रचना की। संस्कृत भाषा में रचित यह महाकाव्य केवल भगवान राम के जीवन का वर्णन नहीं है, बल्कि यह धर्म, नीति, कर्तव्य, आदर्श और करुणा का ग्रंथ है।
वाल्मीकि ने मनुष्य जीवन के हर पक्ष — पुत्र, पति, राजा, शिष्य, मित्र, और नागरिक — का आदर्श रूप प्रस्तुत किया। यही कारण है कि उन्हें ‘आदि कवि’ कहा जाता है और ‘रामायण’ को विश्व का पहला महाकाव्य माना जाता है।
महर्षि वाल्मीकि का दर्शन और सामाजिक संदेश
वाल्मीकि का जीवन यह सिखाता है कि कोई भी व्यक्ति जन्म से महान नहीं होता, बल्कि अपने कर्म, संस्कार और विचारों से महान बनता है। उन्होंने समाज को यह संदेश दिया कि पश्चाताप, आत्मसुधार और ज्ञान के मार्ग से हर व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी हो सकता है।
उनके लेखन में समानता, करुणा, सत्य और अहिंसा की गहरी भावना है। आज के समाज में जब भेदभाव, हिंसा और असमानता जैसी चुनौतियाँ हैं, तब वाल्मीकि का यह संदेश अत्यंत प्रासंगिक है।

वाल्मीकि जयंती का महत्व
यह दिन केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि नैतिक जागरण और आत्मशुद्धि का पर्व है। प पूज्य सर संघचालक मोहन भागवत जी ने भी कई बार अपने उद्बोधन में इसके बारे मे बात की है उन्होने कई बार कहा है कि
“वाल्मीकि जयंती हमारे लिए राष्ट्रीय उत्सव है”
प पू सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने कहा कि यह केवल एक जातीय या समाज-विशेष का पर्व नहीं, बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण दिन है।
2. “वाल्मीकि न होते तो दुनिया श्रीराम से परिचित न होती”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि वाल्मीकि न होते, तो हम श्री राम के बारे में नहीं जानते होते — अर्थात् उन्होंने रामायण लिखकर राम का परिचय हर हिंदू को कराया।
3. “संघ की पूरी ताकत आपके साथ”
वाल्मीकि जयंती के कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की ताकत वाल्मीकि समाज के साथ खड़ी है।
4. समाज से जुड़ने और भागीदारी की अपील
मोहन भागवत ने वाल्मीकि समाज के लोगों से कहा है कि वे संघ की शाखाओं से जुड़ें और अधिक सक्रिय रूप से समाज व राष्ट्र निर्माण में सहभागी बनें।
5. करुणा को धर्म का एक आधार बताया
उन्होंने यह कहा कि धर्म का एक पैर करुणा है — यदि करुणा नहीं होगी तो ज्ञान या तपस्या का महत्त्व अधूरा रह जाता है।
महर्षि वाल्मीकि का जीवन मानवता के लिए एक प्रेरणास्रोत है। उन्होंने दिखाया कि ज्ञान और आत्मबोध से जीवन की दिशा बदली जा सकती है। उनके द्वारा रचित रामायण आज भी हर युग के लोगों को सत्य, प्रेम, और कर्तव्य की राह दिखाती है।
इसलिए, वाल्मीकि जयंती हमें स्मरण कराती है कि हम भी अपने जीवन में सदाचार, करुणा, और सत्य के मार्ग पर चलकर समाज में प्रकाश फैलाएँ — यही महर्षि वाल्मीकि को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।