साल 1947! भारत को आज़ादी मिली — लेकिन एक भारी कीमत पर। लाखों लोग घर-परिवार, ज़मीन, पहचान और अपने परिजन खो बैठे। पंजाब से बंगाल तक लाशों के ढेर, जलते गाँव, और टूटी अस्मिताएँ इतिहास में दर्ज हो रही थीं। इस रक्तरंजित बंटवारे में जब सत्ता, नेता और शासन-तंत्र खुद असहाय हो गए, तब ज़मीन पर सेवा के लिए खड़ा हुआ एक संगठन — राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS)।
बंटवारे की विभीषिका:
भारत-पाकिस्तान विभाजन महज़ एक भौगोलिक रेखा नहीं था, यह एक गहरे सांस्कृतिक और भावनात्मक आघात का नाम था। लाखों लोग मारे गए, 1.4 करोड़ से अधिक लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा। महिलाओं के साथ अत्याचार, अपहरण, जबरन धर्मांतरण — सबकुछ हुआ, और बहुत कुछ अघोषित ही रह गया।
इस समय नेहरू और जिन्ना दोनों ही राजनीतिक नीतियों में उलझे थे। लेकिन जिन्हें न सत्ता चाहिए थी, न श्रेय — वो सेवा कार्य में लग गए। ऐसे समय देश, समाज, धर्म को समर्पित संघ के स्वयंसेवक उनकी सहायता के लिए आगे आए। पहली आवश्यकता हिन्दुओं को वहां से सुरक्षित निकालने की थी। दूसरी उनके लिए आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति और तीसरी भारत पहुंचने पर उनको बसाने की थी। ये तीनों ही काम स्वयंसेवकों ने अपने परिवार की चिंता किए बिना बड़े साहस, बहादुरी व सूझबूझ से किए। एवं जब शस्त्र उठाने की ज़रूरत आन पड़ी तब मां काली के पुत्रों क सामान राक्षसों का संहार किया

जब कांग्रेस नेतृत्व ने हिंदुओं को मुस्लिम लीग के राक्षसों और प्रतिशोधी पाकिस्तानी सेना के भरोसे छोड़ दिया
विभाजन घोषित होते ही रक्त पिपासु अपनी क्षुधा शांत करने हेतु लाशों के ढेर बिछाने लग गए। नफरत में अंधे इनको कुछ नज़र नहीं आ रहा था, वहीं इस सब की करता धर्ता सरकार , पहली फ्लाइट से भारत को भाग आयी । अब इनकी सहायता तो दूर, इनकी पुकार सुनने वाला भी दूर दूर एक कोई नहीं था ।ऐसे समय में आरएसएस के स्वयंसेवक आगे आए। अपनी जान की परवाह किए बिना, उन्होंने साथी हिंदुओं की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। पंजाब राहत समिति की स्थापना की गई। कई जगहों पर राहत शिविर खोले गए। आस-पास के गाँवों के हिंदू, जो सुरक्षित नहीं थे, उन्हें इन शिविरों में लाया गया और वहाँ से भारतीय सेना की मदद से भारत ले जाया गया और उन्होंने यह नहीं सोचा कि यह उनके कर्तव्य की की इतिश्री कर ली है। उन्होंने लाखों विस्थापित साथी देशवासियों को महीनों तक भोजन और आश्रय भी प्रदान किया।
RSS ने यह कार्य बिना बैनर, नारे या फोटो-ऑप के किया। उनके प्रयास मौन, लेकिन प्रभावशाली थे
दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में हज़ारों स्वयंसेवकों ने कैम्प स्थापित किए।
जलपान, दवाइयाँ, कपड़े और बच्चों के लिए दूध की व्यवस्था की।
महिलाओं के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बनाए।
बिछड़े परिवारों को मिलाना: स्वयंसेवक रेलवे स्टेशनों, घेराबंद शिविरों और सीमा चौकियों पर जाकर परिवारों को खोजने में मदद करते थे।
हजारों पत्रों, नोट्स और व्यक्तिगत मुलाक़ातों के माध्यम से लोगों को पुनः जोड़ा।
धार्मिक स्थलों की सुरक्षा: कई स्थानों पर मंदिरों, गुरुद्वारों को लूटपाट और अपवित्रता से बचाने के लिए रात्रि प्रहरी बने स्वयंसेवक।

जब तत्कालीन रक्षामंत्री बलदेव सिंह ने 20000 महिलाओं को बचाने के लिए RSS को अनुरोध किया
स्थिति की लाचारी को 1947 में तत्कालीन रक्षा मंत्री बलदेव सिंह द्वारा सरदार पटेल को लिखे गए पत्र से समझा जा सकता है। कई सुझावों के बीच, उन्होंने सरदार पटेल से सियालकोट जिले में अपहृत 20000 महिलाओं को बचाने के लिए संघ की मदद लेने का अनुरोध किया
“Now It Can Be Told” पुस्तक का प्रमाण:
लाहौर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर A.N. Bali ने अपनी किताब Now It Can Be Told में लिखा:
“यदि RSS के जवानों ने रात-दिन का भेद न मिटाया होता, तो शरणार्थियों की जान नहीं बचती। उन्होंने बिना वेतन, बिना छुट्टी, बिना प्रशंसा के यह काम किया।”
RSS ने केवल महिलाओं को “बचाया” नहीं — बल्कि उनकी अस्मिता को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। शरणार्थी महिलाएं, जिनकी गोद में शिशु थे, जिनकी मांगें मिट चुकी थीं, उन्हें समाज में सम्मान के साथ पुनः स्थापित करना, सबसे कठिन कार्य था। इस काम में RSS की महिला शाखाओं (Rashtra Sevika Samiti) ने भी अद्भुत कार्य किया।
किशन चंद नारंग और बाल कृष्ण नारंग जिन्होंने अंतिम सांस तक खून के उन्मादी प्यासों से देशवासियों की रक्षा की
17 अगस्त,1947 को सीमा निर्धारण आयोग ने घोषणा कर दी कि झंग पाकिस्तान में जाएगा। आसपास के मुसलमानो ने झंग में खूनी तांडव शुरू कर दिया। झंग में आरएसएस की वृहद शाखा चलती थी ।किशनचंद नारंग और बालकृष्ण नारंग ध्येयनिष्ठ कार्यकर्ता थे। उनका घर नूरशाह गेट के बाहर था। हमला उसी ओर से हुआ था।उन्हें भान हो गया की यदि इस हमले को न रोका गया तो वहां रहने वाले समस्त हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी जाएगी । दोनों भाई तलवारें लेकर उन्मादियों से अपनी अंतिम सांस तक संघर्ष करते रहे । एक भाई तो हाथ कटने के पश्चात भी मृत्यु दर पर अपने साथ अनेकों रक्त पिपासुओं को लेकर चले। ये तो मात्र एक उदाहरण है, ऐसे अनेक स्वयं सेवकों ने अपनी और अपनी जान की बलि देते हुए राष्ट्र और उसके निवासियों की रक्षा की । इतने वासरः बाद भी आज उन सबके नाम हम शायद ही जानते होंगे किन्तु नाम के लिए काम करे , वो स्वयं सेवक नहीं होता । वो बस अपना काम करता रहता है ।
एक नवजात संगठन का कालजयी कार्य
विभाजन के दौरान आरएसएस ने जो काम किया, उसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में एक अत्यंत दूरदर्शी कार्य माना जा सकता है। यह समझना होगा कि विभाजन के समय आरएसएस एक नवजात संगठन था, मुश्किल से 29 साल पुराना। । उस छोटी सी अवधि में, एक दशक के भीतर, अविभाजित पंजाब में इसके 100 से ज़्यादा प्रचारक कार्यरत थे, जिनमें से 58 लाहौर से ही थे। अविभाजित पंजाब में आरएसएस की 1,500 से ज़्यादा दैनिक शाखाएँ थीं जिनमें प्रतिदिन एक लाख से ज़्यादा स्वयंसेवक शामिल होते थे।इसी संगठनात्मक शक्ति ने पंजाब में हिंदुओं और सिखों के पूर्ण विनाश को रोका।
संघ के हजारों स्वयंसेवक मौन तपस्वी
बंटवारे की त्रासदी में जब भारत रो रहा था, संघ के हजारों स्वयंसेवक मौन तपस्वी की तरह सेवा में लगे थे।
उनका कोई पद नहीं था, कोई नाम नहीं छपा , लेकिन उनकी भूमिका उस युग की चुपचाप गाई जाने वाली महागाथा है।
यह लेख उन सभी स्वयंसेवकों को समर्पित है जिन्होंने इतिहास में बिना नाम दर्ज हुए भारत के ज़ख्मों पर मरहम रखा।
संघ शतायु भाग : 5 में आप क्या पढ़ना चाहते हैं,हमें कमेंट करके बता सकते हैं ।
यदि आपने संघ शतायु भाग 1 ,2 ,3 miss कर दिया तो वो यहाँ पढ़ें:
Sangh Shatyu Part : 3 https://vskjodhpur.com/rss100-part-3/
Sangh Shatyu Part : 2 https://vskjodhpur.com/rss-at-100-part-2-%e0%a4%b8%e0%a4%82%e0%a4%98/
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