भारतीय एनीमेशन फिल्म उद्योग ने पिछले दशकों में उल्लेखनीय प्रगति की है। तकनीकी दृष्टि से आगे बढ़ते हुए इस उद्योग ने भारतीय संस्कृति को आधुनिक दृश्य माध्यम से जोड़ने का प्रयास किया है। 2005 में प्रदर्शित हुई फिल्म हनुमान को इस क्षेत्र का मील का पत्थर माना जाता है। यह फिल्म तकनीकी रूप से उस समय अत्याधुनिक थी और भावना, भक्ति एवं नायकत्व के अद्भुत समन्वय ने इसे बच्चों और बड़ों के बीच लोकप्रिय बना दिया। इसके बाद बाल गणेश, अर्जुन: द वारियर प्रिंस और राम रिटर्न्स जैसी फिल्मों ने भी पौराणिक और ऐतिहासिक पात्रों को बच्चों तक पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इसी क्रम में छोटा भीम और मोटू-पतलू जैसे टेलीविज़न शो से उत्पन्न फिल्में भी सामने आईं, जिन्होंने भारतीय एनीमेशन को मर्चेंडाइजिंग और पॉप-कल्चर की ओर अग्रसर किया। फिर भी, तकनीकी सीमाओं, बजट की कमी और सीमित प्रचार-प्रसार के कारण भारतीय एनीमेशन सिनेमा उस ऊँचाई तक नहीं पहुँच सका, जिसकी अपेक्षा थी। हालाँकि हाल ही में रिलीज़ हुई फिल्म महावतार नरसिंह ने इस प्रवृत्ति को एक नई दिशा प्रदान की है।
महावतार नरसिंह केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक विरासत को आधुनिक पीढ़ी तक पहुँचाने का प्रयास है। बिना किसी बड़े स्टारकास्ट और अपेक्षाकृत सीमित बजट (लगभग ₹15 से ₹25 करोड़) के बावजूद इस फिल्म ने दर्शकों के दिलों में अपनी जगह बनाई है। इसमें तकनीकी गुणवत्ता, 3D प्रस्तुति और पौराणिक कथा का संतुलित मिश्रण देखने को मिलता है। रिलीज़ के केवल 10 दिनों के भीतर ही फिल्म ने भारत में लगभग ₹100 करोड़ और विश्व स्तर पर ₹112 करोड़ की कमाई कर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया। यह आँकड़ा इसे भारत की अब तक की सबसे अधिक कमाई करने वाली एनिमेटेड फिल्म बनाता है।

इस फिल्म की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि इसने भारतीय एनिमेशन को गंभीरता से लेने के लिए दर्शकों को प्रेरित किया है। महावतार नरसिंह केवल एक फिल्म नहीं बल्कि एक सिनेमैटिक यूनिवर्स का प्रारंभ है, जिसमें भगवान विष्णु के दशावतारों पर आधारित सात फिल्मों की योजना है। अगली कड़ियाँ जैसे महावतार परशुराम, रघुनंदन, द्वारकाधीश और कल्कि पहले ही घोषित की जा चुकी हैं। यह क्रमबद्धता इस बात का संकेत है कि भारतीय सिनेमा अब पौराणिक नायकों को लेकर दीर्घकालिक रचनात्मक दृष्टिकोण अपना रहा है।
तकनीकी स्तर पर भी यह फिल्म यह प्रमाणित करती है कि भारत अब विश्व स्तरीय एनीमेशन के मानक तक पहुँच रहा है। पौराणिक कथाओं को आधुनिक माध्यम में ढालना कठिन कार्य होता है, परंतु निर्देशक अश्विन कुमार ने इसे गरिमामय ढंग से प्रस्तुत किया है। फिल्म की कथा में प्रह्लाद की अडिग भक्ति, हिरण्यकशिपु का अहंकार और संतुलन के लिए अवतार की आवश्यकता जैसे गहरे संदेश निहित हैं। विशेष रूप से नरसिंह अवतार के प्रकट होने वाला दृश्य दर्शकों के लिए अविस्मरणीय अनुभव है।

फिल्म के संगीत और पृष्ठभूमि स्कोर ने भी इसकी आत्मा को प्रखर बनाया है। सैम सी. एस. द्वारा रचित बैकग्राउंड स्कोर, विशेषकर “उग्रं वीरं महाविष्णुं…” जैसे स्तोत्रों ने दर्शकों को आध्यात्मिक और भावनात्मक अनुभव प्रदान किया। फिल्म 2D और 3D दोनों फॉर्मेट्स में हिंदी सहित तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ भाषाओं में रिलीज़ की गई, जिससे इसकी पहुँच व्यापक बनी।
सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि इस फिल्म ने पारिवारिक दर्शकों को एक साथ सिनेमाघरों तक खींचा। माता-पिता अपने बच्चों के साथ यह फिल्म देखने आ रहे हैं और सोशल मीडिया पर इसके संवादों, गीतों और दृश्यों को साझा कर रहे हैं। यह सामूहिक अनुभव भारतीय सिनेमा में दुर्लभ हो चला था, जिसे महावतार नरसिंह ने फिर से जीवित कर दिया।

बीते समय में धार्मिक या पौराणिक कथाओं पर आधारित एनिमेटेड फिल्में प्रायः केवल सीमित दर्शक वर्ग तक ही सीमित रहती थीं, लेकिन इस फिल्म ने यह साबित कर दिया है कि यदि कथानक गहरा हो, प्रस्तुति नवीनता लिए हो और उसमें भावनात्मक-सांस्कृतिक स्पर्श हो, तो दर्शक न केवल जुड़ते हैं बल्कि सिनेमाघरों में लौटकर सामूहिक अनुभव का आनंद भी लेते हैं।
महावतार नरसिंह न केवल तकनीकी और व्यावसायिक सफलता का उदाहरण है, बल्कि यह भारतीयता की जड़ों से जुड़ने का एक नया मार्ग भी प्रशस्त करती है। इस फिल्म ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय पौराणिक कथाओं में आज भी वह शक्ति है, जो उन्हें समकालीन सिनेमा में प्रासंगिक और प्रभावशाली बना सकती है। यदि इस दिशा में निरंतर प्रोत्साहन मिलता रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब भारत वैश्विक एनीमेशन मंच पर तकनीकी, वैचारिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अग्रणी भूमिका निभाएगा।
लेखक
धुर्व कांडपाल