राजस्थान के पांच प्रमुख देवताओं में से एक लोकदेवता हड़बूजी का मेला हर साल के भांति भाद्रपद कृष्ण पक्ष षष्टी को उनकी कर्मस्थली बैंगटी हड़बूजी में भरा जाता है हड़बूजी इतिहास प्रसिद्ध शकुन विचारक, गौरक्षक और चमत्कारिक व्यक्तित्व के महापुरुष हुए। उनका जीवन गौ रक्षा व मानव सेवा समर्पित रहा। प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में श्रद्धालु धोक लगाने आते है। मांगी गई मन की इच्छा पूर्ण होने पर श्रद्धालु मंदिर में स्थापित उनकी गाड़ी की पूजा करते हैं।
परिचय
लोकदेवता हड़बूजी सांखला, पंचपीरों में से एक माने जाते हैं। वे शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे और लोकदेवता रामदेवजी के समकालीन तथा मौसेरे भाई थे। रामदेवजी उन्हें अपना दूसरा रूप मानते थे। दोनों के गुरु एक ही थे – योगी बालीनाथ।
हड़बूजी सांखला गोत्र के राजपूत थे। सांखला राजपूत पंवार राजपूतों की ही एक शाखा है। कहते हैं कि पंवार राजपूतों में एक बाघसिंह नाम के व्यक्ति हुए थे। जिनके पिता की हत्या सिंध प्रांत के शासक ने कर दी थी। अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए बाघसिंह ने भटियाणी माता की तपस्या की। भटियाणी माता ने उसे एक शंख प्रदान किया था। इस शंख को बजाने पर बाघसिंह के बिछड़े हुए साथी उससे आ मिले। और बाघसिंह ने अपने पिता की हत्या का बदला लिया। इस तरह इन लोगों ने उस शंख को पूज्यनीय मानकर उसकी पूजा करना शुरू कर दिया। शंख की पूजा करने से ही ये लोग सांखला कहलाने लगे। हड़बूजी के पिता का नाम मेहराजजी सांखला था। मेहराजजी भुण्डेल गांव के जागीरदार थे। यह गांव वर्तमान में नागौर जिले में आता है। इनकी माता का नाम सौभाग था। ये लोकदेवता रामदेवजी के मौसेरे भाई थे। इन्होंने रामदेवजी के गुरु योगी बालीनाथ को अपना गुरु बनाया था।

वंश और जन्म
- जन्म: भाद्रपद कृष्ण षष्टि विक्रम संवत 1448
- गोत्र: सांखला (पंवार राजपूतों की शाखा)
- पिता: मेहराजजी सांखला (भुण्डेल गांव के जागीरदार – वर्तमान नागौर, राजस्थान)
- माता: सौभाग देवी
- विशेष कथा: सांखला गोत्र की उत्पत्ति पंवार राजपूतों के बाघसिंह से जुड़ी है। भटियाणी माता द्वारा दिया गया एक पवित्र शंख इनके कुल का पूजनीय प्रतीक बना, और इसी से “सांखला” नाम पड़ा।
गुरु और तपस्या
गुरु योगी बालीनाथ ने हड़बूजी को चाखू गांव में तपस्या का आदेश दिया। यहां वे कठिन साधना करते हुए लोककल्याण के कार्यों में भी लगे रहे।
उनके सरल जीवन, सेवा-भाव और जनकल्याण कार्यों ने उन्हें लोकदेवता के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।
राव जोधा को आशीर्वाद
मारवाड़ के शासक राव जोधा, जो उस समय राज्यहीन थे, हड़बूजी के पास आशीर्वाद लेने आए।
- हड़बूजी ने उन्हें अपनी कटार भेंट की और आशीर्वाद दिया कि वे अपना राज्य पुनः प्राप्त करेंगे।
- राव जोधा की बुआ हंसाबाई के प्रयास और राणा कुम्भा की सहमति से, मारवाड़ का राज्य उन्हें वापस मिला।
- कृतज्ञता स्वरूप राव जोधा ने हड़बूजी को बावनी जागीर दी और बेंगटी गांव बसाया।
रामदेवजी का प्याला और छड़ी
रामदेवजी ने समाधि के बाद प्रकट होकर हड़बूजी को अपना प्याला “रतन कटोरा” और छड़ी “सोवन चिरिया” भेंट की।
इनकी मान्यता थी कि यह प्याला और छड़ी मक्का-मदीना से आए पीरों द्वारा रामदेवजी को दी गई थी।

अकाल में सेवा
मारवाड़ में एक बार भयंकर अकाल पड़ा।
- हड़बूजी अपनी बैलगाड़ी पर बाजरा और घास लेकर जरूरतमंदों में बांटने के लिए गांव गांव जाते थे।
- “रतन कटोरा” की चमत्कारी विशेषता थी कि बाजरे की बोरी कभी खाली नहीं होती थी।
- वे न सिर्फ मनुष्यों, बल्कि पशुओं को भी घास खिलाते थे। इस तरह के परोपकार के कार्य हड़बूजी आजीवन करते रहे।
मंदिर और वाहन
लोकदेवता हड़बूजी सांखला का मुख्य मंदिर बेंगटी गांव जोधपुर में बना हुआ है। हड़बूजी ने अपने जीवन का अधिकांश समय बेंगटी मे बिताया था। हड़बूजी ने यहीं समाधि ली थी। यहां पर उनका मन्दिर बनाया गया। इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है। यहां मन्दिर में हड़बूजी की बैलगाड़ी की पूजा की जाती है। यह वही बैलगाड़ी है जिस पर बाजरा और घास रखकर हड़बूजी लोगों की मदद किया करते थे। इस बैलगाड़ी को हड़बूजी का वाहन भी माना जाता है। इस बैलगाड़ी का नाम सिया था। इस मंदिर का निर्माण महाराजा अजीत सिंह ने 1721 ई. (सम्वत् 1778) में करवाया था, जिसमें सांखला राजपूतों को पुजारी नियुक्त किया गया था।
हड़बूजी सांखला, न केवल धार्मिक श्रद्धा के प्रतीक हैं, बल्कि लोकसेवा, त्याग और जनकल्याण की प्रेरणा भी देते हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति सेवा में है।