वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में “डीप स्टेट” जैसी अवधारणा एक बार फिर चर्चा में है। यह शब्द उस अदृश्य सत्ता तंत्र को दर्शाता है, जो लोकतांत्रिक सरकारों के पीछे से निर्णयों को प्रभावित करता है, विशेषतः सामरिक, आर्थिक और राजनीतिक हितों की प्राप्ति हेतु। एशिया महाद्वीप, विशेषकर भारत के पड़ोसी देश—अफगानिस्तान (2021), श्रीलंका (2022), पाकिस्तान (2023), बांग्लादेश (2024), और नेपाल (2025)—इस अदृश्य शक्ति के दुष्परिणामों का शिकार बने हैं। इन देशों में आर्थिक अस्थिरता, राजनीतिक उथल-पुथल और सामाजिक विभाजन के पीछे एक सुनियोजित वैश्विक एजेंडा प्रतीत होता है। इन वर्षों में देखा गया कि भारत के चारों ओर का क्षेत्र अस्थिरता के जाल में फंसता चला गया।अफगानिस्तान (2021), अमेरिका की वापसी के बाद तालिबान का उदय और मानवाधिकार संकट, श्रीलंका (2022) भीषण आर्थिक संकट, विदेशी कर्ज और जनविरोधी नीतियाँ। पाकिस्तान (2023), राजनीतिक अस्थिरता, मुद्रा संकट और IMF पर निर्भरता। बांग्लादेश (2024), चुनावों में विवाद, सामाजिक तनाव और विदेशी हस्तक्षेप की आशंका। नेपाल (2025), संवैधानिक संकट, राजनीतिक खींचतान और सत्ता अस्थिरता। इन सभी संकटों में एक समानता यह देखी गई कि विकासशील देशों की आर्थिक रीढ़ को कमजोर कर उन्हें वैश्विक पूंजीवादी ताकतों के समक्ष नतमस्तक करने का प्रयास किया गया।
2024 के लोकसभा चुनाव से पूर्व भारत में भी विभिन्न आंदोलनों ने जोर पकड़ा—किसान आंदोलन, जातीय और धार्मिक मुद्दों पर प्रदर्शन, और मीडिया में भ्रांति फैलाने की कोशिशें। परंतु भारत की सज्जन शक्ति—जिसमें राष्ट्रप्रेमी नागरिक, सजग युवा, पारदर्शी मीडिया और नीतिगत सतर्कता रखने वाली संस्थाएं सम्मिलित हैं—ने इन सभी प्रयासों को विफल कर दिया। यह सज्जन शक्ति केवल सरकार समर्थक नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में सोचने वाली एक प्रबुद्ध चेतना है जो जानती है कि बाहरी एजेंडे के पीछे छिपे उद्देश्य क्या हैं। लोकतांत्रिक मूल्यों, संविधान और सांस्कृतिक आत्मा की रक्षा में इस शक्ति की भूमिका महत्वपूर्ण रही।
डीप स्टेट की रणनीति “डिवाइड एंड रूल” की नीति पर आधारित रही है।सामाजिक ताने-बाने को तोड़ना, देशों की आर्थिक निर्भरता को बढ़ाना,नेतृत्व को कठपुतली बनाना,संसाधनों पर नियंत्रण पाना डीप स्टेट का प्रमुख उद्देश्य है। जिसके परिणामस्वरूप यह हुआ कि भारत के पड़ोसी देश एक के बाद एक संकट की चपेट में आ गए। भारत को चारों ओर से अस्थिर करने का यह प्रयास क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को बदलने की कोशिश का हिस्सा था।
भारत में सज्जन शक्ति की जागरूकता, डिजिटल युग में सूचनाओं तक पहुंच, शिक्षा का विस्तार और राजनीतिक परिपक्वता ने इस बाहरी हस्तक्षेप को सीमित किया। यद्यपि चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं, परंतु भारतीय समाज ने यह दिखा दिया है कि वह न केवल सहनशील है, बल्कि परिस्थितियों से लड़कर उन्हें सुधारने की सामर्थ्य भी रखता है।
भारतीय उपमहाद्वीप आज जिन संकटों से जूझ रहा है, वह केवल आंतरिक नीतिगत भूलों का परिणाम नहीं हैं, बल्कि वैश्विक सत्ता संघर्ष की एक जटिल रणनीति का हिस्सा भी हैं। डीप स्टेट जैसी अवधारणाएँ हमें यह सोचने पर विवश करती हैं कि सतह के नीचे क्या चल रहा है। परंतु भारत में सज्जन शक्ति की जागरूकता और जनमानस की सामूहिक चेतना ने यह सिद्ध कर दिया है कि राष्ट्र यदि सजग रहे, तो कोई भी साजिश उसे डगमगा नहीं सकती।

लेखाराम बिश्नोई
लेखक व विचारक