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“डीप स्टेट” अवधारणा नहीं, आधुनिक विश्व राजनीति का यथार्थ।


   आधुनिक वैश्विक राजनीति में “डीप स्टेट” (Deep State) शब्द बार-बार चर्चा में आता है। यह शब्द उस गुप्त शक्ति-संपन्न नेटवर्क की ओर संकेत करता है, जो औपचारिक रूप से चुनी हुई सरकारों के परे काम करता है और नीति निर्माण तथा सत्ता संचालन को प्रभावित करता है। इसमें सैन्य अधिकारी, कॉरपोरेट जगत, अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक, विदेशी NGOs, मीडिया और गुप्तचर संस्थाएँ शामिल होती हैं। इनका उद्देश्य प्रायः चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों को कमजोर कर अपने हितों को साधना होता है।
डीप स्टेट कोई औपचारिक सत्ता संरचना नहीं है, बल्कि यह समानांतर शक्ति केंद्र है। उदाहरणस्वरूप पाकिस्तान में सेना और गुप्तचर एजेंसियों को डीप स्टेट कहा जाता है, जो बार-बार लोकतांत्रिक सरकारों को अपदस्थ करती रही हैं। वहीं, अमेरिका जैसे देशों में डीप स्टेट बहुराष्ट्रीय कंपनियों, मीडिया, लॉबिस्ट और गुप्त संस्थानों के रूप में कार्य करता है, जो अन्य देशों का अध्ययन कर उन देशों की नीतियों में हस्तक्षेप कर अपनी आर्थिक-सामरिक स्थिति को मजबूत करते हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में डीप स्टेट पिछले दो दशकों में रंगीन क्रांतियों (Color Revolutions) का उदाहरण अक्सर डीप स्टेट की भूमिका को स्पष्ट करता है। जॉर्जिया (2003), यूक्रेन (2004), किर्गिस्तान (2005) जैसे देशों में निहत्थे प्रदर्शनों के जरिए सत्ता परिवर्तन हुआ, परंतु पीछे से विदेशी संस्थाओं और रक्षा उद्योगों के हित काम कर रहे थे। इसी तरह बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को हटाने के लिए अमेरिकी डीप स्टेट को दोषी ठहराया गया। उद्देश्य यह रहा कि जिन सरकारों की नीतियाँ पश्चिमी हितों के अनुकूल न हों, उन्हें कमजोर कर दिया जाए।
धार्मिक असहिष्णुता के मुद्दे द्वारा भारत की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करने के लिए अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव की झूठी कहानियाँ गढ़ी जाती हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे संगठन भारत सरकार पर “मानवाधिकार उल्लंघन” का आरोप लगाते हैं। जम्मू–कश्मीर मुद्दा – विदेशी मीडिया और NGOs कश्मीर को मानवाधिकार संकट के रूप में प्रस्तुत कर भारत पर दबाव बनाने का प्रयास करते हैं, ताकि अंतरराष्ट्रीय दखल को उचित ठहराया जा सके। किसान आंदोलन (2020–21) – यह आंदोलन प्रारंभ में किसानों का था, परंतु बाद में विदेशी ताकतों, सोशल मीडिया ट्रेंड और NGOs द्वारा उसे भारत की आंतरिक राजनीति को प्रभावित करने के लिए इस्तेमाल किया गया। जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के नाम पर भारत की कोयला आधारित ऊर्जा परियोजनाओं का विरोध किया जाता है, जबकि यही विरोध विकसित देशों की कार्बन-गहन अर्थव्यवस्थाओं पर लागू नहीं होता। उद्देश्य भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता को रोकना और विदेशी ऊर्जा बाज़ार को अवसर देना होता है।सोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफॉर्म जैसे- ट्विटर, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म पर विदेशी “इकोसिस्टम” भारत में आंदोलनों को हवा देकर सरकार विरोधी माहौल बनाने की कोशिश करता है।
किसी भी देश के लिए डीप स्टेट से मुकाबला करना आसान नहीं है, परंतु कुछ ठोस निर्णयों जैसे- रक्षा, ऊर्जा और तकनीकी क्षेत्रों में राष्ट्र की आत्मनिर्भरता जितनी मजबूत होगी, बाहरी ताकतों का हस्तक्षेप उतना ही कम होगा। भारतीय मीडिया, थिंक टैंक और डिजिटल प्लेटफॉर्म को सशक्त कर विदेशी दुष्प्रचार का जवाब देना आवश्यक है।विदेशी फंडिंग वाले संगठनों की गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखकर यह सुनिश्चित किया जाए कि वे भारत विरोधी एजेंडा न चला सकें। यदि अपनी लोकतांत्रिक संस्थाएँ पारदर्शी और मजबूत रहेंगी तो डीप स्टेट के लिए हस्तक्षेप करना कठिन होगा।
डीप स्टेट केवल एक राजनीतिक अवधारणा नहीं, बल्कि आधुनिक विश्व व्यवस्था का कठोर यथार्थ है। यह लोकतांत्रिक संरचनाओं को भीतर से कमजोर करता है और राष्ट्रों की संप्रभुता को चुनौती देता है। भारत को इस चुनौती का सामना आत्मनिर्भरता, राष्ट्रीय एकता और मजबूत कूटनीतिक रणनीति से करना होगा। राष्ट्रीय दृष्टि से स्पष्ट है—हमारा लोकतंत्र, हमारी संप्रभुता और हमारी नीतियाँ केवल भारतीय जनता की आकांक्षाओं से संचालित होंगी, न कि किसी गुप्त अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से।
लेखाराम बिश्नोई
लेखक

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