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जैश-ए-मोहम्मद ने अपनी पहली महिला शाखा शुरू की: जमात-उल-मोमिनात

हाल के दिनों में, जैश-ए-मोहम्मद, जो कि एक आतंकवादी संगठन है, ने अपनी पहली महिला शाखा की स्थापना की है, जिसे ‘जमात-उल-मोमिनात’ नाम दिया गया है। यह घटना न केवल मानवाधिकारों और महिलावाद के लिए चिंताजनक है, बल्कि आतंकवाद के नए रंगरूटों की भर्ती के तरीकों को भी दर्शाती है। इस लेख में हम इस नई शाखा के विभिन्न पहलुओं और उसके संभावित प्रभावों पर चर्चा करेंगे।

जमात-उल-मोमिनात की स्थापना और उसका उद्देश्य

जैश-ए-मोहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवादी घोषित किया गया है, ने इस नई शाखा की घोषणा की है। इस शाखा का उद्देश्य महिलाओं को आतंकवाद की गतिविधियों में शामिल करना और उन्हें “सशक्तिकरण” का एक नया रूप प्रस्तुत करना है।

लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि यह प्रस्तावित सशक्तिकरण वास्तव में एक चौंका देने वाला शोषण है। अफगानिस्तान और अन्य क्षेत्रों में महिलाएं पहले से ही शिक्षा और नागरिक जीवन से वंचित हैं। जहां एक ओर उन्हें स्कूलों से निकाला गया है और सार्वजनिक रूप से बोलने से रोक दिया गया है, वहीं दूसरी ओर उन्हें भाड़े के सैनिकों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। यह एक गंभीर संज्ञानात्मक विडंबना है कि जब आतंकवाद को नए सिपाहियों की आवश्यकता होती है, तो वे उन महिलाओं को कुर्बान करने का प्रयास करते हैं, जिन्हें खुद के अधिकारों से वंचित किया गया है।

महिलाओं की स्थिति: एक विडंबना

पाकिस्तान और उसके समर्थक क्षेत्रीय संगठनों की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने पर यह स्पष्ट होता है कि वे केवल आतंकवादियों को शरण नहीं दे रहे हैं, बल्कि उन्हें तैयार और विकसित कर रहे हैं। अफगानिस्तान की महिलाएं जब शिक्षा और कामकाजी जीवन से पूरी तरह से वंचित हैं, तब उन्हें आतंकवादी संगठनों द्वारा एक अद्भुत उपकरण के रूप में देखा जा रहा है। दुनिया भर में इस विषय पर चुप्पी का होना बेहद चिंताजनक है।

भारत का दृष्टिकोण

भारत के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वह आतंकवाद के खिलाफ किसी भी सरकार का समर्थन करे, जो बिना किसी बहाने के आतंकवाद से लड़ती है। जैश-ए-मोहम्मद की इस नई शाखा की गतिविधियों को देखते हुए, जिनका गंभीर प्रभाव उपमहाद्वीप और वैश्विक सुरक्षा पर पड़ने वाला है, भारत को एक ठोस नीति अपनानी चाहिए।

सरकारों को चाहिए कि वे इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाएं और वैश्विक समुदाय को इस खतरे के प्रति सतर्क करें। यह समय है कि दुनिया आतंकवाद के खिलाफ एकजुट हो, ताकि हम महिलाओं के असली सशक्तिकरण की दिशा में कदम बढ़ा सकें, न कि उनके शोषण के।

जैश-ए-मोहम्मद द्वारा ‘जमात-उल-मोमिनात’ की स्थापना एक गंभीर संकेत है कि आतंकवाद केवल एक लहर नहीं है, बल्कि यह एक सोच है जिसे विकसित किया जा रहा है। इस समस्या का सामना करने के लिए एकजुटता और जागरूकता की आवश्यकता है। युवा पेशेवरों, तकनीकी उत्साही लोगों और छात्रों को इस समस्या के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और इसके समाधान की दिशा में कार्य करना चाहिए। केवल इसी तरह से हम एक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, जहां सभी के लिए समान अधिकार हों।

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