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अखंड भारत से वर्तमान भूखंडों का विभाजन – एक ऐतिहासिक दृष्टि

“अखंड भारत” – यह केवल एक भौगोलिक परिभाषा नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति, सभ्यता, और सनातन जीवनदृष्टि का प्रतीक है। हमारे ऋषि-मुनियों, महापुरुषों और वीर योद्धाओं ने जिस भारतभूमि को एकात्म मानकर संरक्षण किया, वह सहस्राब्दियों तक एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में रही।
किन्तु समय-समय पर बाहरी आक्रमणों, औपनिवेशिक षड्यंत्रों और राजनीतिक दुर्बलता के कारण इस अखंडता को चोट पहुँची, और भारत के कई हिस्से अलग होकर देश बन गए।

नीचे क्रमबद्ध रूप से इन देशों के भारत से अलग होने का संक्षिप्त इतिहास प्रस्तुत है —

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1. अफगानिस्तान

अलग होने का काल: 18वीं सदी (मुख्य रूप से 1748 ई.)

प्रमुख कारण: मुग़ल साम्राज्य की दुर्बलता, अहमद शाह अब्दाली का उदय

पृष्ठभूमि:
प्राचीन काल में गंधार (वर्तमान अफगानिस्तान) मौर्य, कुषाण, और गुप्त साम्राज्यों का अंग रहा। लेकिन 11वीं सदी के बाद तुर्क-अफगान आक्रमणों ने इस क्षेत्र को भारत की केन्द्रीय शक्ति से अलग कर दिया। 18वीं सदी में अहमद शाह अब्दाली ने इसे स्वतंत्र घोषित किया, और ब्रिटिश-रूसी “ग्रेट गेम” के चलते यह एक बफर स्टेट बन गया।

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2. नेपाल

अलग होने का काल: 1816 (सुगौली संधि), 1904 (अंग्रेजों द्वारा पूर्ण स्वतंत्र दर्जा)

प्रमुख कारण: ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से गोरखा युद्ध

पृष्ठभूमि:
नेपाल का भारत से सांस्कृतिक संबंध अत्यंत प्राचीन रहा – जनकपुर, पशुपतिनाथ जैसे तीर्थ भारतीय आस्था से जुड़े हैं। लेकिन 1814-16 के गोरखा युद्ध के बाद सुगौली संधि के माध्यम से इसकी सीमाएं तय हुईं, और अंग्रेजों ने इसे संरक्षित रियासत बना दिया।

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3. भूटान

अलग होने का काल: 1906

प्रमुख कारण: ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति

पृष्ठभूमि:
भूटान, कामरूप-कामता और असम क्षेत्र से सांस्कृतिक रूप से जुड़ा रहा। अंग्रेजों ने इसे अपने सामरिक हितों के लिए भारत से अलग कर स्वतंत्र रियासत के रूप में स्थापित किया।

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4. तिब्बत

अलग होने का काल: 1914 (मैकमोहन रेखा समझौता), 1950 के दशक में चीन का कब्जा

प्रमुख कारण: ब्रिटिश-चीन-तिब्बत त्रिपक्षीय वार्ता, चीन का साम्राज्यवादी विस्तार

पृष्ठभूमि:
तिब्बत, गुप्त और पाल साम्राज्यों के समय भारतीय बौद्ध संस्कृति का केंद्र था। 1914 में मैकमोहन रेखा के तहत ब्रिटिश भारत ने सीमाएं तय कीं, लेकिन 1950 में चीन ने सैन्य कब्जा कर लिया।

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5. म्यांमार (बर्मा)

अलग होने का काल: 1937 (भारत से अलग प्रशासन), 1948 (पूर्ण स्वतंत्रता)

प्रमुख कारण: ब्रिटिश प्रशासनिक विभाजन

पृष्ठभूमि:
प्राचीन समय में यह क्षेत्र समुद्री व्यापार और बौद्ध धर्म के माध्यम से भारत से जुड़ा रहा। ब्रिटिशों ने इसे 1937 में अलग प्रांत घोषित किया, और 1948 में इसे अलग कर दिया ।

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6. श्रीलंका

अलग होने का काल: 1948

प्रमुख कारण: ब्रिटिश उपनिवेशवाद का अंत

पृष्ठभूमि:
श्रीलंका (लंका द्वीप) का संबंध रामायणकाल से भारत के साथ रहा है। बौद्ध धर्म का प्रसार भी अशोक के समय यहां हुआ। अंग्रेजों ने इसे अलग उपनिवेश बनाकर 1948 में अलग कर दिया।

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7. पाकिस्तान

अलग होने का काल: 14 अगस्त 1947

प्रमुख कारण: ब्रिटिश “फूट डालो और राज करो” नीति, मुस्लिम लीग का पृथकतावाद

पृष्ठभूमि:
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एकता को तोड़ने के लिए अंग्रेजों ने धार्मिक आधार पर विभाजन किया, जिससे पाकिस्तान अस्तित्व में आया। यह विभाजन भारत के इतिहास का सबसे बड़ा दर्दनाक अध्याय बना।

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8. बांग्लादेश

अलग होने का काल: 16 दिसंबर 1971

प्रमुख कारण: पाकिस्तान का पूर्वी भाग, भाषा-सांस्कृतिक भेद, मुक्ति युद्ध

पृष्ठभूमि:
1947 में पूर्वी बंगाल पाकिस्तान में शामिल हुआ, लेकिन भाषाई व सांस्कृतिक भेदभाव के कारण 1971 में भारतीय सेना के सहयोग से स्वतंत्र बांग्लादेश बना।

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9. मालदीव

अलग होने का काल: 1965

प्रमुख कारण: ब्रिटिश प्रोटेक्ट्रेट का अंत

पृष्ठभूमि:
भारतीय समुद्री व्यापार नेटवर्क का हिस्सा रहा यह द्वीपसमूह, 19वीं सदी में ब्रिटिश संरक्षित क्षेत्र बना और 1965 में स्वतंत्र हुआ।

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10. अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देश (इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, कंबोडिया, वियतनाम, लाओस, फिलीपींस, ईरान, ताजिकिस्तान, किरगिज़स्तान, कज़ाखस्तान)

ये सभी कभी न कभी भारतीय संस्कृति, व्यापार और धर्म के प्रभाव क्षेत्र में थे।

मौर्य, गुप्त, चोल, और श्रीविजय साम्राज्य के काल में समुद्री व स्थलीय व्यापार मार्गों से जुड़ाव रहा।

इनका राजनीतिक विभाजन प्राचीन काल में ही हुआ, पर सांस्कृतिक प्रभाव आज भी दिखता है।

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निष्कर्ष

अखंड भारत केवल भौगोलिक एकता का स्वप्न नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की अखंडता का प्रतीक है। यह अखंडता कभी राजनीतिक सीमाओं से नहीं, बल्कि साझा इतिहास, धर्म, और जीवनमूल्यों से बनी।
आज आवश्यकता है कि हम इतिहास से सीख लेकर सांस्कृतिक एकता को सुदृढ़ करें, ताकि भविष्य में भारतभूमि की आत्मा पुनः एक स्वर में गूँज सके —
“वसुधैव कुटुम्बकम” और “एकम् सत्यम्”।

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