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भारत-रूस की मास्टर स्ट्रोक डील: ब्रह्मोस-2K हाइपरसोनिक मिसाइल से कांपेंगे चीन-पाकिस्तान

भारत और रूस ने दुनिया को चौंकाते हुए ब्रह्मोस-2K हाइपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के लिए ऐतिहासिक समझौता अंतिम रूप दे दिया है। यह नई मिसाइल मौजूदा ब्रह्मोस की तुलना में तीन गुना ज्यादा तेज़, दोगुनी दूरी और बियॉन्ड-2025 टेक्नोलॉजी के साथ आने वाली है। इस साझेदारी ने चीन और पाकिस्तान की सुरक्षा नीति में भूचाल ला दिया है, क्योंकि उन्हें न तो ऐसी मिसाइल की काट है, न ही इसकी स्पीड और पिन-पॉइंट सटीकता का कोई जवाब।

ब्रह्मोस-2K: अब तक की सबसे आधुनिक भारतीय मिसाइल
ब्रह्मोस-2K मिसाइल को रूस की सुप्रसिद्ध ज़िरकॉन (3M22 Zircon) तकनीक की तर्ज पर स्क्रैमजेट इंजन के साथ विकसित किया जाएगा, जिससे इसकी रफ्तार मैक 7-8 (यानी 9,800 किमी/घंटा+) तक होगी और रेंज लगभग 1,500 किलोमीटर। इसकी सटीकता और स्टील्थ डिज़ाइन इतनी उन्नत है कि मौजूदा एयर डिफेंस सिस्टम इसे पकड़ने में असमर्थ हैं। इस मिसाइल को परमाणु वारहेड ले जाने की क्षमता भी दी जा रही है, जिससे भारतीय स्ट्रैटेजिक डिटरेंस में जबरदस्त मजबूती आएगी।

तकनीकी आकांक्षा और भारत की स्वदेशी ताकत
DRDO और रूस की NPO Mashinostroyeniya की संयुक्त रिसर्च से बनी ब्रह्मोस-2K में भारतीय स्क्रैमजेट टेक्नोलॉजी और रूसी मटीरियल-इंजीनियरिंग का बेहतरीन सम्मिलन होगा। अप्रैल 2025 में भारत द्वारा स्थानीय स्क्रैमजेट इंजन का 1,000 सेकंड का सफल ग्राउंड टेस्ट ब्रह्मोस-2K प्रोग्राम को नई रफ्तार दे चुका है। यह साझेदारी रूस की तकनीकी सहायता और भारत की आत्मनिर्भरता मिशन का बेजोड़ उदाहरण है।

रणनीतिक बढ़त: चीन और पाकिस्तान के लिए सिरदर्द
ब्रह्मोस-2K को ऑपरेशन सिंदूर जैसे मिशनों में इस्तेमाल की गई आधुनिक टेक्नोलॉजी का एक्सटेंशन कहा जा रहा है, जिसने पाकिस्तान की सैन्य बुनियाद को खाक कर दिया था।

हाइपरसोनिक गति और बेहद कम रिफ्लेक्टिव सिग्नेचर की वजह से यह मिसाइल चीन-पाकिस्तान की सीमाओं के लिए अजेय चुनौती सिद्ध होगी।

रक्षा विशेषज्ञों का मानना है—अमेरिका, चीन, रूस के चुनिंदा क्लब में अब भारत भी हाइपरसोनिक हथियारों की पावर के साथ शामिल हो गया है।

ब्रह्मोस के जनक: डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और डॉ. शिवथानु पिल्लै
ब्रह्मोस प्रोग्राम के “फादर” कहे जाने वाले डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम और पहले सीईओ डॉ. शिवथानु पिल्लै का योगदान अमूल्य रहा है। कलाम साहब ने रूसी सहयोग से 1998 में इस क्रांतिकारी मिसाइल प्रोग्राम की नींव रखी और डॉ. पिल्लै के मार्गदर्शन में इसे सुपरसोनिक की सफलता से आज हाइपरसोनिक की दहलीज तक पहुंचाया गया।

कब तक आएगा ब्रह्मोस-2K?
सरकारी और रक्षा सूत्रों के अनुसार, ब्रह्मोस-2K के शुरुआती प्रोटोटाइप 2026-27 तक फ्लाइट टेस्टिंग के लिए तैयार होंगे और 2028 के आसपास इसका उत्पादन व तैनाती संभव होगी। इनोवेशन, इंडिजिनाइजेशन और ग्लोबल यूनिक कॉम्बैट पावर का यह मेल भारत के लिए रक्षा रणनीति में नया युग लेकर आएगा।

ब्रह्मोस-2K डील भारत-रूस सामरिक साझेदारी का ‘गेमचेंजर’ साबित होगी और भारतीय सेना की ताकत को विश्व मंच पर नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी। इससे चीन और पाकिस्तान की चालों पर रोकथाम और भारत का ‘अजेय रक्षा कवच’ सुनिश्चित होगा।

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