भारतीय रक्षा क्षेत्र में एक बड़ा मोड़ तब आया जब सरकार ने आधिकारिक तौर पर ₹13,000 करोड़ की अमेरिकी Stryker आर्मर्ड व्हीकल डील को रद्द कर दिया। यह फैसला लद्दाख जैसे ऊँचे और कठिन इलाकों में इन व्हीकलों के प्रदर्शन में आई खामियों के मद्देनज़र लिया गया। इस निर्णय से न सिर्फ सेना की आवश्यकताओं के प्रति वास्तविकता का संकेत मिला, बल्कि “मेक इन इंडिया” और रक्षा आत्मनिर्भरता का रास्ता भी और स्पष्ट हो गया।
लद्दाख ट्रायल में Stryker की विफलता
भारतीय सेना ने Stryker बख्तरबंद वाहनों का लद्दाख और अन्य चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में परीक्षण किया। रिपोर्ट्स के अनुसार, Stryker इन ऊँचाइयों, प्रतिकूल तापमान व दुर्गम इलाकों की उपयुक्तता में कई मानकों पर असफल रहा। इंजन पावर, स्लोप क्लाइंबिंग क्षमता, ईंधन दक्षता, और स्थानीय लॉजिस्टिक्स में यह वाहन अपेक्षा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सका, जिससे इसका सामरिक प्रयोग संदिग्ध हो गया। रिपोर्ट यह भी बताती है कि वाहन के पावर-टू-वेट रेशियो में कमी और स्लोप पर रोल-बैक जैसी समस्याएं ट्रायल के दौरान सामने आईं।
स्वदेशी विकल्प को प्राथमिकता
इस डील के रद्द होने के साथ, सेना ने DRDO और टाटा द्वारा विकसित स्वदेशी Advanced Armoured Platform (AAP) Wheeled Armoured Platform (WhAP) की ओर रुख किया है। WhAP देशी भूगोल और सामरिक आवश्यकताओं के अनुरूप बेहतर कारगर साबित हुआ है। यह फैसला न केवल आर्म्ड व्हीकल टेक्नोलॉजी में स्वदेशी क्षमता को बढ़ावा देता है, बल्कि रक्षा क्षेत्र में विदेशी निर्भरता कम करने की दिशा में भी अहम है।
अमेरिका पर निर्भरता का अंत
Stryker डील रद्द करने के बाद भारत रक्षा उपकरणों के लिए अमेरिकी विक्रेताओं पर अपनी निर्भरता घटा रहा है। इससे रक्षा बजट का बड़ा हिस्सा देशी अनुसंधान, निर्माण और तकनीकी विकास में निवेश किया जाएगा, जिससे आगे भी आत्मनिर्भरता का रास्ता फलता-फूलता रहेगा।
रणनीतिक संदेश
इस फैसले से भारत ने यह संकेत दिया है कि उसकी सुरक्षा और सैन्य रणनीति विदेशी दबाव या आयातित तकनीक पर नहीं, बल्कि अपने वातावरण और ज़रूरतों के हिसाब से तय होगी। यह निर्णय रक्षा नीति, स्वदेशी उद्योग और कूटनीति के क्षेत्र में दीर्घकालीन सोच का प्रतिष्ठान करता है।
Stryker डील का रद्द होना भारत के आत्मनिर्भर रक्षा विजन, तकनीकी सुधार और वैश्विक शक्ति संतुलन में स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता का उदाहरण है। अब देश की सेनाएं भारतीय भूगोल व ऑपरेशनल ज़रूरतों के अनुरूप स्वदेशी तकनीक पर अधिक विश्वास जता रही हैं, जिससे दीर्घकाल में एक सुरक्षित, सशक्त और आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद और मजबूत होगी।