भारत और नाटो (NATO) के बीच हाल ही में उत्पन्न तनाव ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर कूटनीति और ऊर्जा सुरक्षा की बहस को एक बार फिर केंद्र में ला दिया है। NATO महासचिव मार्क रुटे द्वारा भारत, चीन और ब्राजील को रूस के साथ व्यापार जारी रखने पर कड़े द्वितीयक प्रतिबंधों की धमकी दी गई, जिस पर भारत ने सख्त प्रतिक्रिया दी और अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता दोहराई।
NATO की धमकी और भारत की प्रतिक्रिया
नाटो प्रमुख ने खुलेआम चेतावनी दी कि यदि भारत रूस से तेल-गैस या अन्य व्यापारिक संबंध कायम रखता है, तो उस पर 100% द्वितीयक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इसपर भारत ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नाटो समेत कई यूरोपीय देश खुद रूसी तेल और ऊर्जा का आयात कर रहे हैं, जबकि भारत की नीति और राष्ट्रीय हितों पर दबाव डालना दोहरे मानकों की मिसाल है। भारत ने स्पष्ट संकेत दे दिया कि वह किसी भी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय दबाव या धमकी के आगे नहीं झुकेगा, और अपनी नीतियाँ राष्ट्रहित को ध्यान में रखकर तय करता रहेगा।
यूरोप और पश्चिम का दोहरापन
नाटो प्रमुख की बयानबाजी पर भारत के साथ-साथ विशेषज्ञों ने भी सवाल उठाए हैं कि जब यूरोप स्वयं रूस से गैस और तेल खरीदता है, तो भारत को क्यों रोका जा रहा है। यूरोपीय संघ ने भले ही 2027 तक रूसी ऊर्जा पर निर्भरता कम करने की योजना बनाई हो, परंतु 2024 में भी उसका 18% ऊर्जा आयात रूस से ही था। इससे नाटो और यूरोप की नीतियों में दोहरे मापदंड उजागर होते हैं, जिसे भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर बड़ी मजबूती से रखा।
रणनीतिक स्वायत्तता और विश्व में भारत की भूमिका
भारत ने सख्ती से यह भी स्पष्ट किया कि वह किसी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं है और अपनी विदेश नीति, रक्षा और ऊर्जा आवश्यकताओं के हिसाब से स्वतंत्र निर्णय लेता है। रूस भारत का रणनीतिक साझेदार रहा है, और भारत ने पश्चिमी दबाव के बावजूद रक्षा व ऊर्जा क्षेत्रों में सहयोग जारी रखा है। यही वजह है कि भारत, चीन और रूस के बीच त्रिपक्षीय संगठन (RIC) को फिर से सक्रिय करने की पहल भी चर्चा में है, जिससे अमेरिका और नाटो की चिंता और गहरी हो गई है।
भारत का नाटो को स्पष्ट और ठोस जवाब उसकी नीतिगत दृढ़ता, आत्मनिर्भरता और अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे न झुकने की प्रवृत्ति को दर्शाता है। भारत ने दोहरे मापदंडों की निंदा करते हुए यह साफ कर दिया कि कोई भी धमकी या प्रतिबंध उसकी नीति और नागरिकों के हितों से ऊपर नहीं हो सकता। आने वाले समय में भारत के प्रभावशाली और स्वतंत्र विदेश नीति रुख से वैश्विक शक्ति संतुलन और भी बदल सकता है।