“संघ ने आज़ादी की लड़ाई में भाग नहीं लिया” — यह कथन वर्षों से एक राजनीतिक हथियार बन चुका है। लेकिन क्या यह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है, या यह राजनीतिक विमर्श द्वारा गढ़ा गया एक मिथक है?
स्वतंत्रता संग्राम और सामानांतर धाराएं
१९२५ में जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ (RSS)की स्थापना की तब भारत अपने उन्मुक्त पंखों की तलाश में था । अंग्रेज़ों की दमनकारी नीतियां अपने चरम पर थी और अपनी ही संतानों के लहू से भीगती भारत माता त्रस्त थी । माँ भारती के पुत्र अपने अपने तरीकों से उनकी रक्षा को व्यग्र थे। डॉक्टर केशवराम बलिराम हेडगेवार , भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, विनोबा भावे अपने अपने वैचारिक सामर्थ्यानुसार गाँधी जी के संग सहयोगी रहे ।
उस स्वतंत्र भारत की राह की तलाश में भगत सिंह ने अपनी नयी राह चुनी एवं HSRA की स्थापना की, वहीं बोस ने INA को तटस्थ किया। गाँधी जी के समीपी मित्र व् भूदान आंदोलन के सहयोगी विनोबा भावे ने समय की मांग देखकर फिर गाँधी जी से अलग रास्ता चुन “सर्वोदय” की स्थापना की। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई छोटी-बड़ी धाराएं समानांतर रूप से प्रवाहित हो रही थीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) भी ऐसी ही एक धारा थी।
पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव
१९२० में डॉ हेडगेवार ने गांधी जी के सामने प्रस्ताव रखा कि ‘पूर्ण स्वराज’ – पूर्ण स्वतंत्रता – को एक लक्ष्य के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। हालाँकि गांधी ने उस समय इस विचार का समर्थन नहीं किया था, लेकिन कांग्रेस ने अंततः १९२९ में अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज के लिए प्रस्ताव पारित किया था।
१९२१ में जब प्रांतीय कांग्रेस की बैठक हुई तो क्रांतिकारियों की निंदा करने का प्रस्ताव रखा गया। तब डॉ. हेडगेवार ने इसका जबर्दस्त विरोध किया नतीजतन प्रस्ताव वापस लेना पड़ा। बैठक की अध्यक्षता लोकमान्य अणे ने की थी।
ब्रिटिश शासन ने डरकर डॉक्टर साहब को कराई जेल यात्रा
खिलाफत पर आपत्तियों के बावजूद हेडगेवार सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल हो गए। एक जोशीले वक्ता के रूप में उन्हें मई 1921 में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने मुकदमे में अपना बचाव किया, जिसे सुनकर जज ने शिकायत की कि “उनका बचाव उनके मूल भाषण से भी अधिक राजद्रोही था” और उन्हें नौ महीने के लिए जेल भेज दिया। जुलाई 1922 में जब हेडगेवार को रिहा किया गया, तो उनके सम्मान में एक सार्वजनिक समारोह आयोजित किया गया, जिसे मोतीलाल नेहरू जैसे वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं ने संबोधित किया।
संघ का आरंभिक काल और राष्ट्रीयता की नींव
गांधीजी के अचानक आंदोलन वापस लेने से उन्होंने अपनी दिशा बदली और राष्ट्रभक्ति का एक वैकल्पिक मार्ग चुना — चरित्र निर्माण व अनुशासित समाज का निर्माण।
1925 में इसी सोच के साथ उन्होंने राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का निर्माण किया । कार्यकर्ताओं की दिलाने वाली शपथ “राष्ट्र को स्वतंत्र करके” वाक्यांश से शुरू होती थी।
1930 – सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेकर हेडगेवार दोबारा जेल गए। जेल में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को “देशभक्ति का प्रथम कर्तव्य” बताया।

“संघ के पास कोई स्वतंत्रता सेनानी नहीं था”
राजनीतिक मंशा से और संघ के बढ़ते प्रभाव से भयभीत हो , संघ पर विभिन्न प्रकार के वास्तविक एवं आभासी प्रतिबन्ध लगाए जाने लगे। ये मिथक भी उसी प्रतिबन्ध व् राजनीतिक दबाव का हिस्सा माना जा सकता है। सत्य तो यह है कि संघ ने अपने स्वयंसेवकों को व्यक्तिगत स्तर पर निर्णय लेने की आज़ादी दी थी। अनेकों स्वयं सेवकों ने आंदोलन में भाग लिया। डॉक्टर साहब स्वयं स्वतंत्रता के यज्ञ में चन्दन समिधा बने।अनेकों स्वयं सेवकों के साथ संघ के तीसरे सरसंघचालक जी ने भी स्वतंत्रता आंदोलन में ज़ोरो शोरों से भाग लिया । बारह वर्ष की आयु में बालासाहब देवरस संघ से जुड़ गए। वह बचपन से ही साहसी थे और उनमें नेतृत्व के गुण थे। 1939 में, बालासाहेब नागपुर में एक पूर्णकालिक आरएसएस प्रचारक बन गए। १९४२ के भारत छोडो आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी थी ।

संघ का मानना था कि “राष्ट्रनिर्माण का कार्य स्वतंत्रता से पहले भी और उसके बाद भी अनवरत चलना चाहिए।”
राष्ट्र के को समर्पित यह संगठन (RSS) स्वतंत्रता के समय ही नहीं अपितु उसके बाद भी राष्ट्र हित के लिए तटस्थ हो अपनी आवाज़ उठाता रहा ।व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण की ये कड़ी आज भी जारी है
/https://organiser.org/2024/06/21/91333/bharat/search-for-swaraj-sangh-freedom-struggle/
“जो राष्ट्र को आत्मा मानकर उसकी सेवा करता है, वह किसी क्रांति से कम नहीं।”
— डॉ. हेडगेवार
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