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माओवादियों से संवाद की मांग पर बहस: क्या वामदलों की अपील सुरक्षा चुनौतियों को नजरअंदाज कर रही है?

वामदलों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संयुक्त पत्र लिखकर माओवादियों से संवाद शुरू करने और छत्तीसगढ़ में चल रहे माओवाद विरोधी अभियान ‘ऑपरेशन कागर’ के तहत अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं को तुरंत रोकने की मांग की है। पांच प्रमुख वामदलों—भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) [CPI(M)], CPI (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन, रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी और ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक—ने संयुक्त रूप से यह अपील की है कि केंद्र सरकार माओवादियों के साथ बातचीत का रास्ता अपनाए और हिंसा के स्थान पर शांतिपूर्ण समाधान की दिशा में आगे बढ़े।

पत्र में वामदलों ने छत्तीसगढ़ में चल रहे सुरक्षा अभियानों के दौरान आदिवासी समुदायों के सामान्य जीवन पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को रेखांकित किया है। उनका कहना है कि संविधान की पांचवीं अनुसूची में दिए गए आदिवासी अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है और कॉर्पोरेट द्वारा जंगलों और खनिजों का बेरोकटोक दोहन होने से पर्यावरण और स्थानीय आजीविका दोनों को खतरा पैदा हो रहा है।

वामदलों ने यह भी कहा है कि कई वरिष्ठ माओवादी नेता सुरक्षा बलों की हिरासत में हैं और उन्हें कानून के अनुसार अदालत में पेश किया जाना चाहिए। साथ ही, मुठभेड़ में मारे गए लोगों के शव भी उनके परिवार वालों को नहीं सौंपे जा रहे हैं, जिससे उन्हें श्रद्धांजलि देने का अधिकार भी नहीं मिल रहा है। पार्टियों ने सरकार की इस नीति की कड़ी आलोचना की है और कहा है कि यह कानून के शासन से परे है।

पत्र में केंद्र और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार पर आरोप लगाया गया है कि वे माओवादियों की बार-बार की गई बातचीत की अपील को नजरअंदाज कर रही हैं और हिंसा की नीति पर चल रही हैं। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री द्वारा माओवाद विरोधी अभियान को एक निश्चित समय सीमा में खत्म करने और संवाद की जरूरत से इनकार करने वाले बयानों की भी आलोचना की गई है।

वामदलों ने अपने पत्र में तुरंत अतिरिक्त न्यायिक हत्याओं को रोकने, हाल की घटनाओं की निष्पक्ष न्यायिक जांच कराने और माओवादियों के साथ संवाद शुरू करने की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा है कि माओवादी विचारधारा से असहमति के बावजूद देश के कई नागरिक और राजनीतिक समूह सरकार से माओवादियों के एकतरफा युद्धविराम प्रस्ताव का जवाब देने और हिंसा के स्थान पर संवाद को प्राथमिकता देने की मांग कर रहे हैं।

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