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शिमला समझौते में चंब सेक्टर कैसे खोया गया: ऐतिहासिक संदर्भ

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1971 के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कई क्षेत्रों पर कब्ज़ा किया था, जबकि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर के चंब सेक्टर पर कब्ज़ा कर लिया था.

युद्ध के बाद भारत के पास पाकिस्तान के लगभग 93,000 युद्धबंदी (PoW) और 13,000 वर्ग किमी से अधिक ज़मीन थी, जबकि पाकिस्तान के पास चंब सेक्टर (लगभग 127 वर्ग किमी) था.

1972 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच शिमला समझौता हुआ। इस समझौते में भारत ने पाकिस्तान से कब्ज़ा की गई ज़्यादातर ज़मीन लौटा दी, लेकिन पाकिस्तान ने चंब सेक्टर अपने पास रखा.

भारत ने चंब सेक्टर के बदले पाकिस्तान से युद्धबंदियों की रिहाई और द्विपक्षीय शांति की उम्मीद की थी, लेकिन इस समझौते में चंब सेक्टर को वापस लेने के लिए कोई ठोस शर्त नहीं रखी गई.

कई विशेषज्ञों और सैन्य अधिकारियों ने बाद में माना कि भारत ने कूटनीतिक स्तर पर चंब सेक्टर को खो दिया, जबकि युद्ध के मैदान पर उसकी स्थिति मजबूत थी. इस फैसले की आलोचना भी हुई, क्योंकि इससे लगभग 39,000 एकड़ उपजाऊ ज़मीन और सैकड़ों परिवारों का विस्थापन हुआ.

शिमला समझौते के तहत दोनों देशों ने युद्ध के बाद की नियंत्रण रेखा (LoC) को मान्यता दी और तय किया कि इसे एकतरफा नहीं बदला जाएगा.

1971 युद्ध के बाद शिमला समझौते में भारत ने पाकिस्तान के कब्ज़े से चंब सेक्टर वापस नहीं लिया। इंदिरा गांधी की सरकार ने युद्ध में मिली कूटनीतिक बढ़त का पूरा लाभ नहीं उठाया, जिससे चंब सेक्टर स्थायी रूप से पाकिस्तान के पास चला गया और भारत को सामरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक नुकसान उठाना पड़ा.

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