

“हिंदू गरिमा और सामाजिक समरसता: सह सरकार्यवाह अरुण कुमार जी के विचार”
प्रतिनिधि सभा में सह सरकार्यवाह अरुण कुमार जी द्वारा दिए गए वक्तव्य पर आधारित
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा में सह सरकार्यवाह श्री अरुण कुमार जी ने हिंदू समाज की गरिमा, सामाजिक समरसता और वैश्विक परिप्रेक्ष्य में हिंदुओं की स्थिति को लेकर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उनका वक्तव्य न केवल एक चिंतनशील दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, बल्कि यह भविष्य की रणनीतियों की ओर भी संकेत करता है।
हिंदू गरिमा और वैश्विक संदर्भ
अरुण कुमार जी ने इस बात पर जोर दिया कि हिंदू समाज को अपनी गरिमा बनाए रखने के लिए संगठित और जागरूक रहने की आवश्यकता है। उन्होंने उल्लेख किया कि कई वैश्विक मंचों पर हिंदुओं को कभी-कभी अनुचित आलोचना का सामना करना पड़ता है, लेकिन यह केवल बाहरी परिस्थितियों की देन नहीं है, बल्कि हमारी आंतरिक एकजुटता में कहीं न कहीं कमी भी इसकी वजह है।
उन्होंने कहा कि जो समाज अपने गौरव और संस्कृति को सहेजकर नहीं रखता, वह धीरे-धीरे हाशिये पर चला जाता है। हिंदू समाज को अपने ऐतिहासिक योगदान और वर्तमान प्रभाव को पहचानने की आवश्यकता है।
अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य और नीति निर्माण
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय नीति निर्माण में हिंदुओं की प्रभावी भागीदारी पर बल दिया। कई देशों में हिंदू समुदाय बड़ी संख्या में मौजूद है, लेकिन उनका प्रभाव नीति निर्माण में न्यूनतम रहता है। यह स्थिति केवल भारत में ही नहीं, बल्कि कनाडा, अमेरिका, यूके, और अन्य पश्चिमी देशों में भी देखी जा सकती है।
“हमें वैश्विक मंचों पर अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी। हिंदुओं को संगठित होकर अंतरराष्ट्रीय नीति निर्माण में भूमिका निभानी होगी। सिर्फ प्रतिक्रिया देना पर्याप्त नहीं, बल्कि सक्रिय भागीदारी आवश्यक है।” – अरुण कुमार जी
हिंदू समाज के प्रति एकजुटता और समर्थन
उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि कोई समुदाय या संगठन हिंदू समाज के प्रति नकारात्मक रवैया अपनाता है, तो हिंदुओं को संगठित होकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। हमें केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक और सक्रिय दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है।
वर्तमान समय में जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू समाज की छवि को चुनौती दी जा रही है, तो संघ यह मानता है कि “हमें अपनी संस्कृति, परंपरा और विचारधारा को आत्मविश्वास के साथ प्रस्तुत करना चाहिए।”
समाज के विभिन्न वर्गों से संवाद
अरुण कुमार जी ने इस बात पर भी जोर दिया कि हिंदू समाज के भीतर विभिन्न वर्गों और समूहों के बीच संवाद आवश्यक है। संघ ने 1.5 लाख से अधिक प्रभावशाली समाजिक नेताओं, बुद्धिजीवियों, और अन्य महत्वपूर्ण व्यक्तियों से संवाद स्थापित करने की पहल की है।
यह संवाद केवल संघ के विचारों को साझा करने तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज के भीतर व्यापक विमर्श को जन्म देने का एक प्रयास है।
निष्कर्ष
अरुण कुमार जी का वक्तव्य हमें यह सीख देता है कि हमें अपने अधिकारों, संस्कृति, और वैश्विक पहचान को बनाए रखने के लिए सक्रिय रहना होगा। हिंदू समाज की गरिमा तभी सुरक्षित रहेगी, जब वह अपने भीतर की एकजुटता को मजबूत करेगा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराएगा।
संघ का यह दृष्टिकोण केवल आत्मरक्षा नहीं, बल्कि हिंदू समाज की सकारात्मक पुनर्स्थापना और प्रभावी नेतृत्व की ओर एक कदम है।
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