Vishwa Samvad Kendra Jodhpur

गुणों के आधार पर संस्कारित समाज का निर्माण करें – स्वांतरंजन जी

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गुणों के आधार पर संस्कारित समाज का निर्माण करें – स्वांतरंजन जी 
परमपूजनीय सरसंघचालक माननीय मोहनजी भागवत की उपस्थिति में सम्पन्न स्वयंसेवक संगम
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नागौर ८ मार्च २०१६. स्वयंसेवक को हनुमानजी के जैसे धृती, दृष्टि, मति व दक्षता आदि गुणों को अपने अन्दर विकसित करना चाहिए। डाक्टरजी द्वारा प्रदत्त कार्यपद्धति का प्रयोग करते हुए हम अपने सनातन राष्ट्र को सशक्त करने का संघ उदेश्य पूर्ण करें। यह बात नागौर जिले के स्वयंसेवक संगम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वांतरंजन जी ने कही। उन्होंने कहा कि संघ में तीन विषय है पहला साध्य अर्थात् हिन्दू समाज को संस्कारित कर राष्ट्र को परम शिखर पर पहुंचाना, दूसरा विषय साधक अर्थात् कार्यकत्र्ता जो संघ प्रवाह में बहकर शालीग्राम बन जाए अर्थात् अपनी रुचि, प्रकृति व व्यवहार में से दोषों को हटाकर गुणों को बढ़ाता जाए, तीसरा विषय है साधन अर्थात् कार्यपद्धति जो डाक्टर हेडगेवार के गहन चितंन, इतिहास बोध व अनेक बन्धुओं से विचार विमर्श  के बाद बनी है।  उन्होंने संघ प्रार्थना के पांच गुणों के आधार पर शील अर्थात् व्यवहार, आचरण का महत्त्व बताया। गीता का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारा संवाद सत्य एवं प्रिय होना चाहिए, जिससे हम सभीे को जोड़ सकें। अहिंसा, सत्य, अस्तेय आदि पंचशील की चर्चा की।

अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख ने बताया कि हजार-बारह सौ वर्षों के संघर्ष के कारण हिन्दू समाज अपनी अस्मिता भूल गया है। वह यह भूल गया है कि हम किन श्रेष्ठ पूर्वजों की संतान है। हमें विद्या एवं शारीरिक शक्ति का उपयोग समाज हित में करना होगा। छोटे-छोटे कार्यक्रमों का निरन्तर अभ्यास करने से शक्ति बनती है।
उन्होंने संस्कृत के श्लोक का अर्थ करते हुऐ बताया कि जो बैठा रहता है उसका भाग्य भी बैठ जाता है, जो खड़ा रहता है उसका भाग्य स्थिर रहता है और जो सोता रहता है उसका भाग्य निष्क्रिय रहता है। और जो चलता रहता है उसका भाग्य भी साथ-साथ चलता रहता है। इस लिए हम को समाज को साथ लेकर सदैव चलते रहना चाहिये। चरैवेति, चरैवेति…….
इस से पूर्व स्वयंसेवकों ने योग, दण्डयोग, समता व सामूहिक गीत – नव रचना साकार करें……- का प्रदर्शन  किया।
इस अवसर पर मंच पर माननीय क्षेत्र संघचालक डाॅ. भगवतीप्रकाश जी  एवं प्रांत संघचालक ललित जी  शर्मा भी उपस्थित थे।
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