महाराष्ट्र सरकार ने राज्य में जबरन या प्रलोभन देकर किए गए धर्मांतरण को रोकने के लिए सख्त धर्मांतरण विरोधी कानून लाने की घोषणा की है। साथ ही राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में बने अवैध चर्चों पर कार्रवाई करते हुए उन्हें छह महीने में ढहाने की तैयारी शुरू कर दी गई है।
राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने विधानसभा में जानकारी दी कि जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए सख्त कानून तैयार किया जा रहा है। नंदुरबार के नवापुर तालुका में बने 199 अवैध चर्चों की जांच के लिए डिविजनल कमिश्नर के नेतृत्व में एक समिति बनाई गई है। जांच के बाद छह महीने के भीतर ये चर्च ढहाए जाएंगे।
धुले, नंदुरबार, गढ़चिरौली जैसे आदिवासी बहुल जिलों में ईसाई धर्मांतरण की शिकायतों पर भाजपा विधायक अनूप अग्रवाल सहित कई विधायकों ने चिंता जताई। आदिवासी समुदायों — विशेषकर भील और पावरा — के बीच बढ़ते धर्मांतरण को रोकने के लिए सरकार उन्हें एसटी दर्जा एवं आरक्षण लाभों की याद दिलाकर ‘घर वापसी’ के लिए प्रेरित करेगी।
सरकार अब धर्म बदलने वाले आदिवासियों से आरक्षण लाभ छीनने पर भी विचार कर रही है। इसी के तहत आदिवासी विकास विभाग द्वारा सभी आदिवासी जिलों में सर्वे कराया जा रहा है।
भाजपा विधायकों ने दो निजी विधेयक – महाराष्ट्र धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक, 2025 और महाराष्ट्र धर्मांतरण निषेध विधेयक, 2025 – पेश किए हैं। इसके बाद विधानसभा में एक समिति बनाई गई है जो अन्य राज्यों के कानूनों का अध्ययन कर ‘लव जिहाद’ और धर्मांतरण से संबंधित कानून तैयार करेगी।
इससे पहले, डीजीपी की अध्यक्षता में सात सदस्यीय समिति बनाई गई थी जो राज्य में जबरन धर्मांतरण की घटनाओं की समीक्षा कर रही है।
बॉम्बे आर्चडायसिस ने प्रस्तावित कानून का विरोध किया है। उनका कहना है कि यह संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन है, जो नागरिकों को धर्म चुनने और प्रचार करने की स्वतंत्रता देता है। चर्चों का कहना है कि स्वैच्छिक धर्मांतरण को भी आपराधिक करार देना असंवैधानिक है।
12 जुलाई को आजाद मैदान, मुंबई में हजारों ईसाई, सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी नेता एकत्र हुए और भाजपा विधायक गोपीचंद पडळकर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की मांग की, जिन्होंने कथित तौर पर पादरियों के खिलाफ इनाम घोषित किया था।
देश के 10 से अधिक राज्यों – जैसे मध्यप्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल – में पहले से धर्मांतरण विरोधी कानून लागू हैं। परंतु अक्सर इन कानूनों में ‘बल, छल, या प्रलोभन’ जैसे शब्दों की अस्पष्टता के चलते अल्पसंख्यक समुदायों पर दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं।
महाराष्ट्र सरकार के सामने अब यह चुनौती है कि वह धर्मांतरण पर रोक लगाते हुए भी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा कर सके।
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