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भारत और अमेरिका में टैक्स वार: भारत की डिजिटल टैक्स नीति से अमेरिकी कंपनियों में हड़कंप, अब ऐतिहासिक बदलाव

भारत ने 2016 में “इक्वलाइजेशन लेवी” (डिजिटल टैक्स) लागू कर अमेरिकी टेक कंपनियों जैसे Google, Meta, Amazon पर ऑनलाइन विज्ञापन और डिजिटल सेवाओं से मिलने वाली आय पर 6% टैक्स वसूलना शुरू किया। इसका मकसद यह था कि विदेशी कंपनियां, जिनका भारत में कोई भौतिक दफ्तर नहीं है, वे भी यहां की डिजिटल अर्थव्यवस्था से जो कमाई कर रही हैं, उस पर टैक्स दें—क्योंकि भारतीय फर्मों को ऐसी सेवाओं पर इनकम टैक्स देना पड़ता है।

अमेरिका ने लगातार भारत की इस नीति को “भेदभावपूर्ण” और अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर का टैक्स करार देते हुए तीव्र विरोध किया। अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) ने इसे “संयुक्त राज्य अमेरिका की कंपनियों के लिए नुकसानदेह, अनुचित और व्यापार विरोधी” बताया और जवाबी टैरिफ की चेतावनी दे डाली। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने दो टूक दावा किया कि “यदि भारत जैसे देश डिजिटल सेवा टैक्स लगाकर अमेरिकी कंपनियों पर बोझ डालेंगे, तो हम भी इसी तरह का बदला लेंगे।”

भारत ने इस पर जोर देकर कहा कि टैक्सेशन का अधिकार उसकी संप्रभुता में है और इन प्लेटफॉर्म्स की अरबों डॉलर की कमाई भारत से होती है, तो टैक्स भारत को ही मिलना चाहिए—चाहे कंपनी अमेरिका में हो!

बड़े बदलाव की घोषणा: डिजिटल टैक्स हटाया
2025 बजट में भारत सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए 6% इक्वलाइजेशन लेवी (डिजिटल टैक्स) को 1 अप्रैल 2025 से पूरी तरह समाप्त करने की घोषणा कर दी है। यह कदम भारत-अमेरिका के बीच तनाव कम करने, वैश्विक OECD टैक्स सुधारों से मेल, और डिजिटल व्यापार में बाधाएं घटाने के मकसद से लिया गया है। अब अमेरिकी कंपनियों को ऑनलाइन विज्ञापनों व डिजिटल सेवाओं पर यह ‘गूगल टैक्स’ नहीं देना पड़ेगा।

क्यों था ‘टैक्सेशन बाहर अधिकार क्षेत्र’ का विवाद?
अमेरिका ने बार-बार कहा कि भारत को सीमा पार से चलने वाली डिजिटल सेवाओं (जैसे गूगल, फेसबुक) पर टैक्स लगाने का कोई अधिकार नहीं क्योंकि इनका केंद्रीय संचालन अमेरिका या दूसरे देशों से होता है। भारत ने तर्क दिया कि—जिस देश में ग्राहक हैं, डेटा है और भारी आर्थिक गतिविधि है, वहां टैक्सेशन का अधिकार भी होना चाहिए। इससे दोनों देशों में टैक्स नीति और डिजिटल संप्रभुता पर खुली टकराहट हो गई थी।

भारत की रणनीतिक मजबूती
हालांकि भारत ने डिजिटल टैक्स खत्म तो किया, पर साथ ही यह भी साफ किया है कि वह अपनी टैक्स नीति में बदलाव लाने और जरूरत पड़ने पर भविष्य में फिर डिजिटल टैक्स का विकल्प बना सकता है। सरकार ने अमेरिकी व्यापार वार्ता प्रस्ताव में ‘एकतरफा प्रतिबंध’ को नामंजूर कर दिया—यानि अमेरिका भारत पर डिजिटल टैक्स न लगाने की कानूनी शर्त नहीं थोप सकता।

भारत की डिजिटल टैक्स नीति ने लंबे समय तक अमेरिका को निर्णायक चुनौती दी और भारत ने वैश्विक मंच पर अपना टैक्स-प्रभुत्व और व्यापारिक हित सुरक्षित किए। अब डिजिटल टैक्स हटाया जरूर गया, लेकिन भारत ने अपनी “टैक्सेशन संप्रभुता” और नीति अधिकार का संदेश स्पष्ट रूप से दुनिया को दिया है। दोनों देशों के बीच भविष्य में भी ‘डिजिटल टैक्स’ और ‘टैक्सेशन अधिकार-सीमा’ को लेकर कूटनीतिक और कानूनी बहस जारी रहेगी।

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