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बिहार के सीमांचल में ‘आधार संकट’: चार जिलों में आबादी से ज्यादा आधार कार्ड, बांग्लादेशी घुसपैठ और मतदाता पहचान पर गहराया विवाद

बिहार के सीमांचल क्षेत्र के चार जिलों—किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया—में आधार कार्ड की संख्या आबादी से भी ज्यादा हो गई है, जिससे राज्य में राजनीतिक और प्रशासनिक हलचल मच गई है। इन जिलों में आधार सैचुरेशन 120% तक पहुंच गया है, यानी हर 100 लोगों पर 120 से अधिक आधार कार्ड जारी हो चुके हैं। किशनगंज में यह आंकड़ा 126%, कटिहार और अररिया में 123% तथा पूर्णिया में 121% दर्ज किया गया है, जबकि पूरे बिहार का औसत 94% है। यह स्थिति तब सामने आई है जब राज्य में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान (SIR) के तहत दस्तावेजों की जांच चल रही है।

यह संकट केवल आंकड़ों का नहीं, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़ा है। सीमांचल क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति—पश्चिम बंगाल, नेपाल और बांग्लादेश की सीमाओं के करीब—इसे घुसपैठ और फर्जी दस्तावेजों के लिहाज से संवेदनशील बनाती है। बीते दो दशकों में यहां जनसांख्यिकी में बड़ा बदलाव आया है। 1951 से 2011 के बीच मुस्लिम आबादी में 16% की वृद्धि दर्ज की गई और अब किशनगंज में मुस्लिम आबादी 68%, अररिया में 50%, कटिहार में 45% और पूर्णिया में 39% तक पहुंच गई है। कुल मिलाकर, इन चार जिलों में मुस्लिम आबादी 47% हो चुकी है।

आधार कार्ड की अधिकता ने मतदाता सूची में फर्जी नामों की आशंका को जन्म दिया है। चुनाव आयोग को हर विधानसभा क्षेत्र में औसतन 10,000 फर्जी वोटरों की आशंका है। आयोग ने विशेष पुनरीक्षण अभियान शुरू किया है, लेकिन दस्तावेजों की जांच में शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भारी अंतर देखने को मिल रहा है। पटना जैसे शहरी इलाकों में आधार कार्ड को पहचान के दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जा रहा है, जबकि सीमांचल के ग्रामीण क्षेत्रों में जन्म प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र या भूमि दस्तावेज मांगे जा रहे हैं। इससे गरीब, अल्पसंख्यक और प्रवासी समुदायों के लिए वोटर लिस्ट में नाम जोड़ना मुश्किल हो गया है।

इस विवाद ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है। विपक्ष का आरोप है कि दस्तावेजी सख्ती से गरीबों और अल्पसंख्यकों का वोटिंग अधिकार छिन सकता है, जबकि सरकार और चुनाव आयोग का कहना है कि यह कदम फर्जीवाड़े और अवैध घुसपैठ को रोकने के लिए जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने भी चुनाव आयोग को आधार, राशन और वोटर कार्ड को दस्तावेजों के रूप में शामिल करने पर विचार करने का सुझाव दिया है।

बिहार के सीमांचल में आधार कार्डों की यह असामान्य स्थिति प्रशासन, राजनीति और समाज के लिए बड़ी चुनौती बन गई है। यह सवाल अब और गहरा हो गया है कि क्या यह फर्जीवाड़ा है, दस्तावेजी खामी है या बांग्लादेशी घुसपैठ का संकेत? जवाब जो भी हो, चुनाव आयोग और सरकार के लिए पारदर्शिता, निष्पक्षता और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना अब सबसे बड़ी प्राथमिकता है।

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