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बांग्लादेश में हिन्दू समाज पर अत्याचार : प्रतिनिधि सभा की गंभीर चिंता और भारत का दायित्व

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(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा में प्रस्तुत वक्तव्य के आधार पर)

“जहां मजहबी उन्माद मानवता को रौंदे, वहां समाज की सजगता और वैश्विक चेतना की आवश्यकता होती है।”

बांग्लादेश में हाल ही में हुए सत्ता परिवर्तन के दौरान उभरे राजनैतिक आंदोलनों और मजहबी कट्टरपंथ की हिंसक लहरों ने वहां के हिंदू समाज और अन्य अल्पसंख्यकों पर घातक प्रहार किया है। यह घटनाएं किसी भी मानवीय, लोकतांत्रिक और सभ्य समाज के मापदंड पर घोर निंदनीय एवं शर्मनाक हैं।

प्रतिनिधि सभा में क्या कहा गया?

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा ने इन घटनाओं की कड़ी निंदा करते हुए कहा:

> “यह बर्बरतापूर्ण हमले मानवता के विरुद्ध अपराध हैं। संघ स्वयंसेवकों और विभिन्न संगठनों ने मिलकर देशभर में कट्टरपंथी उन्मादियों का खंडन करने के लिए कार्यक्रम किए हैं। भारत सरकार ने भी बांग्लादेश सरकार से वहां के हिंदुओं की रक्षा के लिए आग्रह किया और अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने का प्रयास किया है।”



बांग्लादेश के हिन्दू समाज की अदम्य शक्ति

वक्तव्य में एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही गई:

> “बांग्लादेश का हिन्दू समाज इस भयानक परिस्थिति में भी आत्मविश्वास और साहस के साथ खड़ा है। वह अपने बलबूते पर संघर्ष कर रहा है और आक्रमणकारी शक्तियों से टकरा रहा है – यह अत्यंत सराहनीय है।”



यह उस जुझारू और जागरूक समाज की पहचान है, जो न केवल पीड़ित है, बल्कि संघर्षशील और आत्मनिर्भर भी है।

भारत का सामाजिक दायित्व

भारत का समाज केवल संवेदना नहीं व्यक्त करता, बल्कि अपने वहां के हिंदू भाइयों के लिए हर प्रकार के समर्थन और सहयोग के लिए प्रतिबद्ध है। यही समय है जब भारत का समाज, संगठन, सरकार और वैश्विक समुदाय एक स्वर में बोले।

वैश्विक समुदाय की जिम्मेदारी

प्रतिनिधि सभा ने स्पष्ट रूप से कहा:

> “जागतिक समुदाय को भी बांग्लादेश में हो रहे इन मानवाधिकार हननों के खिलाफ सामने आकर आवाज उठानी चाहिए।”



यह सिर्फ एक देश का मुद्दा नहीं, यह वैश्विक मानवता का प्रश्न है — अल्पसंख्यकों के जीवन, गरिमा और अस्तित्व की रक्षा का विषय है।




निष्कर्ष : एकजुट समाज ही समाधान है

बांग्लादेश के हिंदुओं की पीड़ा हम सबकी पीड़ा है। हमें न केवल वाणी में संवेदना, बल्कि व्यवहार में सहायता और वैश्विक मंच पर मुखरता के साथ खड़ा होना होगा। यह समय है, जब हमारा सामाजिक बल, संघठन की शक्ति और राष्ट्र की संवेदनशीलता एकजुट होकर न्याय और सुरक्षा के पक्ष में खड़ी हो।


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