पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा हाल ही में प्रकाशित की गई नई ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) सूची ने राज्य की राजनीति और सामाजिक समीकरणों में हलचल मचा दी है। इस सूची के अनुसार, “मोअर बैकवर्ड” श्रेणी में 49 समुदायों को शामिल किया गया है, जिनमें से 32 मुस्लिम समुदाय हैं। यानी, इस श्रेणी में 65% से अधिक हिस्सेदारी मुस्लिम समुदायों की है, जबकि राज्य की कुल मुस्लिम आबादी लगभग 30% है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या ओबीसी आरक्षण का लाभ असंतुलित रूप से मुस्लिम समुदायों को दिया जा रहा है और हिंदू पिछड़े वर्गों के हक़ पर असर पड़ रहा है?


आंकड़ों की हकीकत
राज्य सरकार की नई ओबीसी सूची के अनुसार, ओबीसी ‘A’ वर्ग में 81 समुदाय हैं, जिनमें से 56 मुस्लिम समुदाय हैं। वहीं, ‘B’ वर्ग में 99 में से 41 मुस्लिम समुदाय हैं। कुल मिलाकर, ओबीसी सूची में 180 में से 97 मुस्लिम समुदाय शामिल हैं। यह आंकड़ा राज्य की मुस्लिम आबादी के अनुपात से कहीं अधिक है। यही कारण है कि विपक्ष और कई सामाजिक संगठन इसे “धार्मिक आधार पर आरक्षण” की ओर बढ़ता कदम मान रहे हैं।
राजनीतिक और कानूनी बहस
इस मुद्दे पर पहले भी विवाद हो चुका है। कलकत्ता हाई कोर्ट ने हाल ही में राज्य सरकार की ओबीसी सूची को रद्द करते हुए कहा था कि “धर्म को ही आधार बनाकर पिछड़ेपन का निर्धारण करना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।” कोर्ट ने यह भी कहा कि ओबीसी लाभ केवल सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर ही मिलना चाहिए, न कि धार्मिक पहचान के आधार पर। नेशनल कमीशन फॉर बैकवर्ड क्लासेस (NCBC) ने भी राज्य सरकार की प्रक्रिया को तथ्यात्मक रूप से गलत और पक्षपातपूर्ण बताया है।
राज्य सरकार का पक्ष
सरकार का तर्क है कि मुस्लिम समुदायों को सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन के कारण ओबीसी सूची में शामिल किया गया है। उनका कहना है कि यह फैसला व्यापक सर्वे और सामाजिक अध्ययन के आधार पर लिया गया है, न कि केवल धर्म के आधार पर। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्पष्ट किया है कि राज्य सरकार सभी पिछड़े वर्गों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है।
हिंदू पिछड़े वर्गों की चिंता
हालांकि, हिंदू पिछड़े वर्गों और उनके संगठनों का कहना है कि ओबीसी सूची में मुस्लिम समुदायों की बढ़ती हिस्सेदारी से उनके लिए आरक्षण का दायरा सीमित हो जाएगा। इससे शिक्षा, नौकरियों और अन्य सरकारी योजनाओं में हिंदू पिछड़े वर्गों को अपेक्षित लाभ नहीं मिल पाएगा।
पश्चिम बंगाल की नई ओबीसी सूची ने राज्य में सामाजिक न्याय और आरक्षण व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या यह सूची वास्तव में सामाजिक-आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए है, या फिर यह एक खास समुदाय को राजनीतिक लाभ पहुंचाने की रणनीति है? यह बहस अभी जारी है और आने वाले समय में इसके राजनीतिक और कानूनी परिणाम देखने को मिल सकते हैं।