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नेपाल के रास्ते भारत पर आतंकी साजिश: जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा की खतरनाक योजना का पर्दाफाश

हाल ही में नेपाल के राष्ट्रपति के सलाहकार सुनील बहादुर थापा और कई वरिष्ठ अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि पाकिस्तान-आधारित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) भारत पर बड़े हमले की योजना बना रहे हैं और इसके लिए नेपाल को ट्रांजिट रूट के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं। यह खुलासा काठमांडू में नेपाल इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड एंगेजमेंट (NIICE) के एक हाई-लेवल सेमिनार में हुआ, जिसमें दक्षिण एशिया की सुरक्षा चुनौतियों पर चर्चा की गई थी,  काठमांडू में आयोजित एक उच्चस्तरीय सुरक्षा सेमिनार में यह चिंता जताई गई कि भारत-नेपाल के बीच 1,751 किलोमीटर लंबी खुली सीमा इन संगठनों के लिए सबसे आसान रास्ता बन गई है।

इतिहास गवाह है कि 1999 के काठमांडू-नई दिल्ली IC-814 विमान अपहरण कांड में भी आतंकियों ने नेपाल से घुसपैठ कर हथियार भारत लाने में सफलता पाई थी। आज भी यही खुली सीमा, फर्जी दस्तावेज़ और सीमावर्ती इलाकों में बढ़ते कट्टरपंथी नेटवर्क भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन चुके हैं। तराई के इलाकों में अवैध मदरसों और कट्टरपंथी संगठनों की बढ़ती सक्रियता से युवाओं की ब्रेनवॉशिंग और आतंकी संगठनों में भर्ती का खतरा बढ़ गया है।

नेपाल और भारत दोनों के लिए यह खतरा केवल सीमित नहीं है, बल्कि इसका असर दोनों देशों की आंतरिक सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ सकता है। मनी लॉन्ड्रिंग, हवाला नेटवर्क और फर्जी दस्तावेज़ों के जरिए आतंकवाद को फंडिंग मिलती है, जिसे रोकना दोनों देशों के लिए बड़ी चुनौती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस खतरे से निपटने के लिए भारत-नेपाल को अपनी सीमाओं पर संयुक्त गश्त, इंटेलिजेंस साझा करना और फर्जी दस्तावेज़ों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी। नेपाल सरकार ने भी माना है कि पाकिस्तान की आतंकवाद-समर्थक नीति न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की शांति के लिए खतरा है।

इस समय भारत और नेपाल को मिलकर सीमा सुरक्षा, स्थानीय नेटवर्क की निगरानी और आतंकी फंडिंग के स्रोतों पर कड़ी नजर रखने की जरूरत है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों की भारत पर हमले की योजना हकीकत बन सकती है।

यह खतरा अब सिर्फ थ्योरी नहीं, बल्कि सुरक्षा एजेंसियों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों की गंभीर चेतावनी है, जिसे नजरअंदाज करना दोनों देशों के लिए भारी पड़ सकता है।

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