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जालौर में कथावाचक अभयदास महाराज का विवाद: धार्मिक अस्मिता और प्रशासन के बीच तनाव

राजस्थान के जालौर ज़िले में श्रावण मास के अवसर पर आयोजित समरसता चातुर्मास और कथा कार्यक्रम को लेकर कथावाचक अभयदास महाराज और स्थानीय प्रशासन के बीच उत्पन्न हुआ विवाद अब राज्यव्यापी सुर्खियाँ बटोर रहा है। बायोसा माता मंदिर में दर्शन को लेकर उपजा यह विवाद धीरे-धीरे धार्मिक अस्मिता, जनसामूहिक समर्थन और कानून-व्यवस्था की जटिलताओं में उलझता गया। प्रस्तुत है इस पूरे घटनाक्रम का विस्तृत समाचार:

श्रावण कथा की शुरुआत और पहला विवाद
11 जुलाई 2025 को तखतगढ़ धाम (पाली) से आए कथावाचक अभयदास महाराज ने जालौर के भगत सिंह क्रीड़ा स्थल पर श्रावणमासीय कथा और समरसता चातुर्मास महोत्सव की शुरुआत की। आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। कथा के दौरान अभयदास महाराज ने बायोसा माता मंदिर परिसर में स्थित एक मजार को लेकर विवादित टिप्पणी की, जिसे उन्होंने अतिक्रमण बताया।

यह बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और धार्मिक समुदायों के बीच प्रतिक्रिया उत्पन्न होने लगी। प्रशासन ने स्थिति को संवेदनशील मानते हुए निगरानी बढ़ा दी।

मंदिर दर्शन को लेकर टकराव
18 जुलाई को महाराज अपने समर्थकों के साथ मंदिर दर्शन के लिए रवाना हुए। प्रशासन का कहना था कि यह धार्मिक जुलूस बिना अनुमति निकाला गया, जिससे सार्वजनिक शांति भंग होने की आशंका थी। पुलिस ने रास्ते में उन्हें रोक दिया। इस दौरान कथावाचक समर्थकों और पुलिस के बीच तीखी झड़प हुई, जिसमें एक पुलिसकर्मी घायल हो गया और वाहन भी क्षतिग्रस्त हुआ।

इस घटना के बाद अभयदास महाराज ने कालका कॉलोनी स्थित एक मकान की छत पर पहुँचकर आमरण अनशन शुरू कर दिया। उन्होंने मांग की कि मुख्यमंत्री सहित वरिष्ठ अधिकारी पैदल उनके साथ मंदिर जाएँ, तभी वे अनशन तोड़ेंगे।

अनशन, जनसमर्थन और प्रशासनिक सख़्ती
19 जुलाई को महाराज के आमरण अनशन में बड़ी संख्या में समर्थक जुटने लगे। संत समाज के अनेक प्रतिनिधियों ने भी उनके समर्थन में आवाज़ उठाई और प्रशासन से शांति पूर्वक समाधान की मांग की। सोशल मीडिया पर “#AbhaydasWithDharma” जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।

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20 जुलाई को जालौर के प्रभारी मंत्री जोराराम कुमावत ने महाराज से मुलाकात की और उन्हें शांतिपूर्वक समाधान का भरोसा दिलाया। इसके बाद महाराज ने अनशन समाप्त कर दिया और वापस तखतगढ़ लौट गए।

राज्यपाल की यात्रा के दौरान हुआ हंगामा
विवाद यहीं नहीं थमा। 24 जुलाई को जब राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े जालौर के दौरे पर थे, उसी दौरान कथावाचक के समर्थकों ने कलेक्ट्री के बाहर प्रदर्शन किया और राज्यपाल के काफिले को रोकने की कोशिश की। बड़ी संख्या में महिलाएं, साधु-संत और स्थानीय लोग रास्ते में बैठ गए।

पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए लाठीचार्ज किया। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर बोतलें फेंकी और बैरिकेड तोड़ दिए। राज्यपाल को वैकल्पिक मार्ग से सर्किट हाउस ले जाया गया। इस दौरान कुछ महिलाओं को चोटें भी आईं और कई लोग बेहोश हुए।

क्या है विवाद का मूल?
कथावाचक अभयदास महाराज का कहना है कि बायोसा माता मंदिर के परिसर में बनी मजार एक अवैध अतिक्रमण है जिसे हटाया जाना चाहिए। उन्होंने इसे सनातन संस्कृति पर सीधा हमला बताया और प्रशासन पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लगाया।

वहीं प्रशासन का कहना है कि यह मामला धार्मिक भावना से जुड़ा है और सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखना उनकी जिम्मेदारी है। इसलिए बिना अनुमति मंदिर तक जाने की इजाजत नहीं दी गई। इसके अतिरिक्त, कथावाचन स्थल और मंदिर मार्ग का निरीक्षण कर निष्पक्ष निर्णय लेने का आश्वासन भी दिया गया है।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
इस घटनाक्रम ने राजस्थान की राजनीति में भी हलचल मचा दी है। एक ओर संत समाज ने इसे “हिंदू अस्मिता का अपमान” करार दिया है, वहीं विपक्षी नेताओं ने सरकार पर कथावाचकों की आवाज़ दबाने का आरोप लगाया है। प्रशासन द्वारा किए गए लाठीचार्ज और राज्यपाल के काफिले पर हुए व्यवधान को लेकर सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनलों पर तीखी बहस जारी है।

जालौर की यह घटना केवल एक धार्मिक कथावाचक और मंदिर दर्शन तक सीमित नहीं रही। यह प्रकरण अब राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना, प्रशासनिक संतुलन और धार्मिक पहचान की रेखाओं को छू रहा है। सवाल यह है कि क्या भविष्य में प्रशासन, संत समाज और जनमानस मिलकर ऐसे विवादों से संयमपूर्वक निपटने की ओर बढ़ेंगे या इस प्रकार की घटनाएँ और अधिक तीव्र होंगी।

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