संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन एक बड़ा संवैधानिक घटनाक्रम सामने आया, जब कई दलों के सांसदों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा को हटाने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को महाभियोग प्रस्ताव सौंपा। इस प्रस्ताव पर लोकसभा के 145 सांसदों तथा राज्यसभा के 63 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं, जबकि कुल समर्थन 208 सांसदों तक पहुँच चुका है। समर्थकों में भाजपा, कांग्रेस, टीडीपी, जेडीयू, जेडीएस, जन सेना, एजीपी, शिवसेना (शिंदे गुट), एलजेपी, एसकेपी, सीपीएम जैसे लगभग सभी दलों के सांसद शामिल हैं।
लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को संविधान के अनुच्छेद 124, 217 और 218 के तहत यह ज्ञापन सौंपा गया। प्रमुख हस्ताक्षरकर्ता सांसदों में अनुराग ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी, राजीव प्रताप रूडी, पी पी चौधरी, सुप्रिया सुले, केसी वेणुगोपाल सहित कई वरिष्ठ नेता शामिल हैं।
Members of Parliament today submitted a memorandum to the Lok Sabha Speaker to remove Justice Yashwant Varma. 145 Lok Sabha members signed the impeachment motion against Justice Verma under Articles 124, 217, and 218 of the Constitution.
— DD News (@DDNewslive) July 21, 2025
MPs from various parties, including… pic.twitter.com/g7862cntO7
जस्टिस वर्मा हाल ही में उस कैश कांड में फंसे हुए हैं, जिसमें उनके दिल्ली स्थित सरकारी आवास से बड़ी मात्रा में नकद राशि और जल चुके नोट बरामद हुए थे। फायर ब्रिगेड की सूचना के बाद मौके पर जांच में ‘500 रुपये के जलते-बुझते नोटों के ढेर’ पाए गए थे। इस मामले की रिपोर्ट तत्कालीन चीफ जस्टिस ने जांच कमेटी गठित कर तैयार की थी, जिसके आधार पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पद से हटाने की सिफारिश भेजी गई।
अब प्रस्ताव पर अगली प्रक्रिया के तहत लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति इसकी जांच और आगे की कार्रवाई के लिए समिति गठित करने पर विचार करेंगे। नियमों के अनुसार, प्रस्ताव स्वीकार होने के बाद जांच कमेटी 1 से 3 महीने में रिपोर्ट सौंपेगी। महाभियोग प्रस्ताव अगर अमल में आता है, तो आगामी शीतकालीन सत्र में संसद की कार्यवाही में इस पर अंतिम फैसला संभव है।
यह घटनाक्रम न केवल न्यायपालिका की पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए मिसाल है, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक भी है।
BIG- Impeachment of Justice Verma Starts in Parliament
— Frontalforce 🇮🇳 (@FrontalForce) July 21, 2025
This a bold step by the executive to show Judiciary its limits! pic.twitter.com/FZGEeWaZnf