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ऑपरेशन सिंदूर और FICCI सेमिनार: भारत के सामने तीन मोर्चों की सच्चाई

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ऑपरेशन सिंदूर के बाद दिल्ली में आयोजित FICCI के ‘New Age Military Technologies’ सेमिनार में भारतीय सेना के डिप्टी चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने इस सैन्य अभियान के रणनीतिक पहलुओं और सबकों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह संघर्ष केवल भारत-पाकिस्तान तक सीमित नहीं था, बल्कि भारत को एक ही सीमा पर तीन विरोधियों—पाकिस्तान, चीन और तुर्की—का सामना करना पड़ा। पाकिस्तान भले ही सीधे मोर्चे पर था, लेकिन चीन ने उसे हरसंभव तकनीकी और खुफिया सहायता दी, जबकि तुर्की ने अत्याधुनिक ड्रोन और सैन्य उपकरणों की आपूर्ति कर पाकिस्तान की ताकत बढ़ाई।

जनरल सिंह ने बताया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को रियल टाइम सैटेलाइट इमेजरी और इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस के जरिए भारत की सैन्य तैनाती और मूवमेंट की जानकारी उपलब्ध कराई। डीजीएमओ स्तर की बातचीत में पाकिस्तान ने भारतीय सैन्य इकाइयों की वास्तविक स्थिति का उल्लेख किया, जिससे साफ था कि उसे चीन से लाइव डेटा मिल रहा था। चीन ने इस संघर्ष को अपनी हथियार प्रणाली और तकनीक की ‘लाइव लैब’ की तरह इस्तेमाल किया—वह पाकिस्तान के जरिए अपने हथियारों को भारतीय सेना के खिलाफ टेस्ट कर रहा था।

तुर्की की भूमिका भी कम अहम नहीं रही। तुर्की ने पाकिस्तान को बायरaktar जैसे ड्रोन, निगरानी प्रणाली और अन्य सैन्य हार्डवेयर उपलब्ध कराए, जिससे पाकिस्तान की निगरानी और स्ट्राइक क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। जनरल सिंह ने भारतीय रक्षा उद्योग को आगाह किया कि भविष्य का युद्ध बहु-आयामी, तकनीकी रूप से उन्नत और स्वचालित प्रणालियों पर आधारित होगा, जिसमें आत्मनिर्भरता, अनुसंधान और नवाचार सबसे बड़ी जरूरत है।

सेमिनार में यह भी स्पष्ट हुआ कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत की रणनीति और सैन्य कार्रवाई पूरी तरह डेटा, इंटेलिजेंस और तकनीकी श्रेष्ठता पर आधारित थी। कुल 21 टारगेट्स की पहचान की गई, जिनमें से नौ को बेहद सोच-समझकर निशाना बनाया गया। सेना की लीडरशिप ने स्पष्ट संदेश दिया कि अब भारत किसी भी प्रकार की आक्रामकता का जवाब देने के लिए तैयार है और जरूरत पड़ने पर सैन्य कार्रवाई को समय रहते नियंत्रित भी कर सकता है।

ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित कर दिया कि भारत को अब पारंपरिक युद्ध के साथ-साथ तकनीकी, साइबर और मल्टी-फ्रंट खतरों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए, रक्षा नीति, सैन्य रणनीति और उद्योग—तीनों को मिलकर भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयार रहना होगा।

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